Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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४८१ दिहिमा इमिणा (वि.) ६०१, ४५३. देवीस्वीकृतमानसस्य (वि.) १९५, १७२. [र. अं. ३. पृ. १३८ ]
[ता. व. अं. ४ ] दिनमवसितं विश्रान्ताः (अ.)६१३, ३८१. | देवे वर्षत्यशनपचन (वि.) १६३, १४०. दिवमप्युपयातानाम् (अ.) ५७७, ३७०. | देव्या स्वप्नोद्गमादिष्टदेवी (वि.) ५३३,३२१ [रु. का. ७. ६.]
[दे. श. १०१] दिवाकराद्रक्षति (अ.) ३३१, २३९. | देशः सोयमरातिशोणितजलैर् (अ) ४२६, [कु. सं. स. १. लो. १२]
२९१; (वि.) २६७, २५१ दिशः प्रसादयन्नेष (अ.) ६१५, ३८२.
[ वे. सं. अ. ३, श्लो ३३] दिशामलोकालकभङ्गतां (अ.) ५९८, ३७५. दैवादहमद्य तया (वि.) १५५, ९२.
कादम्बरी 'लो. १८] | दैवायत्ते हि फले (वि) ६२, २१. दिीकुर्वन् (वि.) ७१, २३.. दैवे पराङ्मुखे कष्टम् (वि.) ५२, १९.
[मे. दू. पू मे. 'लो. ३१] दोर्मन्दीरितमन्दरेण (वि.) ११०, ३०. दुर्वाराः स्मरमार्गणाः (अ.) ६४३, ३९३. | दोर्मलावधिसूत्रितस्तनमुरः(अ.)६९३,४१४.
[सुभा. ११५६. भट्टशङ्कुकस्य दोलाविलासेषु विलासिनीनां (अ.) ३८९, दुस्साला दो णिक्खंतम्हि (वि.) ६०१,
२६५. ४५३. [ र. अं. ३. पृ. १३८ ] | द्यामालोकयतां (वि.) २४, ११... दूराकर्षणमोहमन्त्र (अ.) १६७, १४९..
[ विद्यानन्दस्य ] दूराकृष्टशिलीमुखव्यतिकरान् (वि.) द्युवियद्गामिनीतारसंराव (अ.) ४७७,३२३. ४०, १६...
द्योतितान्तःप्रभैः (वि.) ६६, २१. दूरादुत्सुकमागते (अ.) ९५, १०४. [अ. श. *लो. ४९।।
[शि. व. स. २ श्लो. ७] दृराद् दवीयो (अ.) १३४, १३३. द्रविणमापदि (अ.) २३१, २०८. [म. च. सं. २. 'लो. १)
[भल्लट, श. श्लो. ४ ] दरोद्दण्डतडित्कराल (वि.) ४०४, २७५.
द्रोणाश्वत्थामरामेषु (अ.) ५८५, ३७३. दे आ पसिअ (अ.) २२, ५५. | दृढतरनिबद्धमुष्टेः (अ.) २७४, २२३. देयानश्चण्डधामा (वि.) ४९५, ३१३.
दृशा दग्धं मनसिज (अ.) ६०५, ३७६; देव स्वस्ति वयं (अ.) २८६, २२७. .
(वि.) ३३९, २०४. देवानां नन्दनो देवो (वि.) १८३, ३०७.
[वि. शा. भ. अं. १, श्लो. २ ] [का. द. परि. ३. लो. ९३ ] / दृष्टा यूयं निर्जिता (वि) १९८, १७३. देवताभक्तितो मुक्तिन (अ.) ४१२, २७०.
[ता. व.] देवि त्वाये गिराजस्रं (वि.) ४७०, ३०४.
दृष्टिं हे प्रतिवेशिनि (अ.) ७०८, ४१७. देवीभावं गमिता (अ.) ५४६, ३५४. .
दृष्टिनोंमृतवर्षिणी (वि.) १९६, १७२. [ रत्नावली ? ]
[ता. व. अं. २
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