Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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सो भाति पुष्पाणि (वि.) २५९, १८८. सूर्याचन्द्रमसौ (वि.) ३६३, २५०. . साम्यं संप्रति (वि.) ३२२, १९६.
[वि. अं. ४, लो. १९] [वि. शा. भ. अं. १, *लो. २५.] सूर्गीयति सुधारश्मिम् (अ.) ५१२, ३४४. सा रक्षतादपारा (अ.) ४५४, ३०१. | सृजति च जगद् (अ.) ५८६, ३७३.
देश. 'लो. १६] / सेना लीलीलीना (वि.) ४९१, ३११. सालोए चिय (म.) ७११, ४१८.।
[रु. का. लो. १५] [स. श. १३० गा. स. श. २. ३०.] सो नस्थि एत्थ (अ.) ६६१, ३९८. सावशेषपदम् (अ.) १२८, १३१. सोऽपूर्वो रसनाविपर्ययविधिः(वि.)५४८,३६६ [शि. व. स. १०. 'लो. १६]
[भालटशतक. 'लो. १८.] साहन्ती सहि (अ.) ३६, ६२. सोऽयं करेस्तपति (वि.) ३१८, १९५. [स. श. ८६०]
सोहव्वलक्खणमुहं (अ.) ५१७, ३४६. सांयात्रिकर् (वि.) ९१, २७. सौधादुद्विजते (वि.) ४००, २५८. सितनृशिरःलजा (अ.) ४७३, ३२२. सौन्दर्यस्य तरङ्गिणी ५३७, ३५१. सिता संसत्सु (वि.) ५१५, ३१९. स्तनकर्परपृष्ठस्था (वि.) १२६, ३३.
दे. श. लो. ९३] / स्तनगुरुजघनाभिराममन्दं (अ.)४७४,३२२. सिद्धार्थयष्टिषु (वि.) २८८, १९२. स्तनयुगमश्रुस्नातं (वि.) ३९४, २५६. सिहिपिच्छकण्णऊरा (अ.) ७२५, ४२५. [का. लो, २१. पृ. २६ ]
[स. श. १७३; गा. स. श २, ७३.] स्तेनतास्तेनतास्ते (वि.) ४७७, ३०६. सीतां ददाह (अ.) ५९१, ३७४. .
स्तुमः कं वामाक्षि (अ.) १६८, १५०.
स्त्रियः प्रकृतिपित्तलाः (वि.) २९२, १९२. सीतासमागम (वि.) ५३, १९. स्त्रीणां केतक (वि.) ४३९, २८६. सुधाबद्भप्रासेर् (अ.) ५६७, ३६८. स्थूलावश्यायविन्दु (वि.) ३२६, १९७. [वि. शा. भ. अं. १. 'लो. ३१]
| निग्धश्यामलकान्ति (अ.) ६८, ७०. मुम्वइ समागमिस्सइ (अ.) ३२, ६१. स्नेहं समापिबति (वि.) ३९८, २५८.
[स. श. ९६२) स्पन्दते दक्षिणं (वि.) ५५९, ३८६. सुमातरक्षयालोक (वि) ५१३, ३१९. स्पृशति तिग्मरुची (अ.) २२९, २०८.
[दे. श. *लो. ९१] [ हरविजय स. ३. 'लो. ३७ ] सुरदेशस्य ते (वि.) ५०९, ३१८. स्फुरदद्भुतरूपम् (अ.) ६४५, ३९४.
[ दे. श. 'लो. ८८] स्फूर्जद्वज्रसहस्रनिर्मितम् (अ.) ६७४, ४०७. सुर कयोल्लासपरः (भ.) ३२२, २३५. [म. प. अ. १. "लो. ५३. ] सुरासुरशिरोरत्न (वि.) ४१६, ३०४. स्मरदवथुनिमित्तं (अ.) ७२९, ४२६. सुवर्णपुष्पा (अ.) ६९, १. | धिनिकस्य दशरूपकावलोक प्र.२, सू. ४०]
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