Book Title: Kavyanushasana Part 1
Author(s): Hemchandracharya, Rasiklal C Parikh
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
४९२
शृङ्गारी गिरिजानने (अ.) १८२, १५९. स गतः क्षितिम् (अ:) १५४ अ, १४३.
[ शृङ्गारतिलक प. १. लो. १०] स च्छिन्नबन्ध (वि.) १६४, १४०. शृङ्गोत्खातभुवः (वि.) ४२३, २८१.
[र. वं. स. ५. *लो. ४९] शेतां हरिभवतु (वि.) ११२, ३१. सन्नइ सुरहिमासो (वि.) १४१, ७२. शैलात्मजापि (अ.) १०१, १११. . सणियं वच्च (अ.) २१, ५५. .
[कु. सं. स. ४. *लो. ७५ ] / सततमनङ्गोऽनङ्गो (वि.) ३३६, २०३. शैलेन्द्रप्रतिपाद्यमान (अ.) ६२८, ३८८. सत्यं त्वमेव सरलो (अ.) ५८७, ३७३. शैशवेऽभ्यस्तविद्यानां (वि) ३८३, २५४. |
[रु. का. ९-३५] [र. वं. स. १, 'लो. ८ ] सत्य मनोरमाः (अ.) १८८, १६२... शोकेन कृतस्तम्भः (वि.) १५७, ९२. [सुभाषितावली. 'लो. ३२६१] श्यामास्वङ्ग (अ.) ११, ४१. सत्त्वं सम्यक् (अ.) ४९७, ३३८.
[मे. दू. उ. लो. ४१] | स त्वार भरतो (अ.) ४५५, ३०१. श्यामा श्यामलिमानम् (अ.) ४१८, २७१.
[रु. का. अ. ३. १८] [वि. भ. अ. ३. *लो. १J सत्त्वारम्भरतो (अ.) ४५६, ३०१. श्याा स्मितासितसरोजदृशं(वि.)१२८,३५.
[रु. का. अ. ३. १९] श्यामेष्वङ्गेषु (वि.) २४१, १८५. श्रियः पतिः (वि.) २०१, १७४.
सदक्षिणापाङ्गनिविष्टमुष्टि(अ.) ६११,३८०.
। सदाप्नोति यतिर् (वि.) ५०३, ३१७. [शि. व. स. १. *लो. १]
[दे. श. 'लो. ८३.] श्रीपरिचयाद् (अ.) १७६, १५५.
सदामध्ये यासाम् (अ.) ३६८, २६१. [सुभा. २८५४ रविगुप्त ]
सदाव्याजवशिध्याताः (वि.) ५००, ३१७. श्रुतिसमधिकमुच्चैः (अ.) ४०८, २६९.
[ दे. श. श्लो. ८१] [शि. व. स. ११, 'लो. १.]
संध्यां यत्प्रणिपत्य (अ.) १०६, ११३. श्रुतेन बुद्धिर् (अ.) ४०१, २६७.
| सपदि पडि विहङ्गमनामभृत् (अ.)३१८,२३६ श्वासा बाष्पजलं (अ.) ७१२, ४१८. स एकस्त्रीणि (अ.) ५९५, ३७५..
सपदि हरिसखैर् (वि.) ६१८, ४६०.
[कि. अ. स. १० *लो. १८.] स एष (अ.) ४३५, २९६. सकलमहीभृत् (वि.) ६२४, ४६२.
स पातु वो यस्य (वि.) २०९, १७५ [ह. च. उ. ४ पृ. ११९ ] सभायां तादृश्यां (वि.) १३४, ४२. स किलेन्द्रप्रयुक्तेन (वि.) ४३१, २८३. सभ्रभङ्गं (अ.) ७३१, ४२७, सखजरीटा (वि) २६०, १८९.
धनिकस्य दशरूपकावलोक प्र.२. सू. ४२] सग्गं अपारिआयं (अ.) ५६०, ३६५...
समदमतगज (अ.) ५९२, ३७४. . [से. ब. ४-२०], समस्तगुणसंपदः (वि.) १८०, १५३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631