Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ १०. सव्वविहत्ति-णोसव्वविहत्तीणं दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य। ओघेण मोह० सव्वपदेसा सव्वविहत्ती। तदूणो णोसव्वविहत्ती। एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
११. उक्कस्स-अणुक्कस्सविहत्ती० दुविहो णि०-ओघे० आदेसे० । ओघेण मोह. सव्वुक्कस्सदव्वं उकस्सविहत्ती । तदू णमणुक्कस्सविहत्ती। एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
१२. जहण्णाजहण्णविहत्ति० दुविहो णि०-ओघेण आदेसे० । ओघेण मोह० सव्वजहणं पदेसग्गं जहण्णविहत्ती। तदुवरि अजहण्णविहत्ती । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । ___६१३. सादि-अणादि-धुव-अद्भुवाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसे । ओघेण मोह० उक्क० अणुक्क० जहण्ण० किं सादिया किमणादिया किं धुवा किमडुवा ? सादि-अद्धवा । अज० किं सादिया ४ १ अणादिया धुवा अद्धवा वा । आदेसेण सव्वासु गदीसु सव्वपदाणि सादि-अद्भुवाणि । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
१०. सर्वविभक्ति और नोसर्वविभक्तिका निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके सब प्रदेशोंको सर्वविभक्ति कहते हैं और उन से न्यून प्रदेशोंको नोसर्वविभक्ति कहते हैं । अर्थात् यदि सब प्रदेशोंमें से एक भी प्रदेशको कम कर दिया जाय तो वे प्रदेश नोसर्वविभक्ति कहे जाते हैं। इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
११. उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मोहनीयके सर्वोत्कृष्ट द्रव्यको उत्कृष्ट विभक्ति कहते हैं और उससे न्यून द्रव्यको अनुत्कृष्टविभक्ति कहते हैं । इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
१२. जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिका निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके सबसे जघन्य प्रदेशोंको जघन्य प्रदेशविभक्ति कहते हैं और उससे ऊपरके प्रदेशोंको अजघन्य प्रदेशविभक्ति कहते हैं। इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
१३. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका हैओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेश विभक्ति, अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति और जघन्य प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रव है अथवा अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है । अजघन्य प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है अथवा अध्रुव है ? अनादि, ध्रुव और अध्रुव है। आदेशसे सब गतियोंमें सब पद सादि और अध्रुव होते हैं। इस प्रकार अमाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
विशेषार्थ-मोहनीयकर्मके क्षय होनेके अन्तिम समयमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है और इससे अतिरिक्त सब अजघन्य प्रदेश सत्कर्म है, अतः अजघन्य प्रदेश सत्कर्ममें सादि विकल्प सम्भव नहीं, शेष तीन अनादि, ध्रुव और अध्रव सम्भव हैं। अनादिका खुलाशा तो पहले किया ही है। तथा भव्योंकी अपेक्षा अध्रुव और अभव्योंकी अपेक्षा ध्रुव विकल्प होता है। अब रहे उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशसत्कर्म सो इन तीनोंमें सादि और अध्रुव
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