Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
मूलपयडिपदेसवित्तीए भागाभागं ६९. जहण्णए पयदं। दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओषेण जहण्णसमयपबद्धमस्सिदण अहणं कम्माणं पदेसवंटणविहाणस्स उकस्ससमयपवद्धवंटणविधाणभंगो। जहण्णसंतमस्सिदण अहण्हं पि कम्माणं पदेसवंटणस्स उक्करससंतकम्मपदेसवंटणभंगो। एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
वेदनीय ६१४४ १२२८८ १८४३२
मोहनीय ६१४४ ३०७२
ज्ञानावरण ६१४४ २५६
दर्शनावरण ६१४४ २५६
अन्तराय ६१४४ . २५६
९२१६
६४००
६४००
६४००
आयु
गोत्र ६१४४
६१४४
नाम ६१४४
९६ ६२४०
६२०८
अतः सबसे कम भाग आयुको मिला। उससे अधिक भाग नाम और गोत्रको मिला। नाम और गोत्रसे अधिक भाग ज्ञानावरण आदिको मिला। उनसे अधिक भाग मोहनीयको
और मोहनीयसे अधिक भाग वेदनीयको मिला। यह बटवारा बंधकी अपेक्षासे बतलाया है । पूर्वमें बन्धकी अपेक्षा जो आठों कर्मोंका बटवारा किया है उसी प्रकार सत्त्वकी अपेक्षा भी जानना चाहिये। किन्तु जिस प्रकार सात कर्मोका बन्ध निरन्तर होता है उस प्रकार आयुकर्मका बन्ध निरन्तर नहीं होता। अतः बन्धकी अपेक्षा आठ कर्मों का जो भाग पहले बतलाया है वह सत्त्वकी अपेक्षा नहीं प्राप्त होता। किन्तु आठों कर्मोंका जो समुदित द्रव्य है आयुकर्मका द्रव्य उसके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है, अतः वेदनीयको छोड़कर शेष छह कौमसे प्रत्येकका द्रव्य कुछ कम सातवें भाग और वेदनीयका द्रव्य साधिक सातवें भागप्रमाण प्राप्त होता है। इस प्रकार बन्धकी अपेक्षा सत्तामें स्थित द्रव्यमें इतनी विशेषता है । इस विशेषताके अनुसार सब द्रव्यका असंख्यातवाँ भाग सबसे पहले अलग करदे। यह आयकर्मका भाग होगा। शेष असंख्यात बहुभागका सात कोंमें उसी क्रमसे बटवारा कर ले जिस क्रमसे बन्धकी अपेक्षा किया है। तात्पर्य यह है कि सत्त्वकी अपेक्षा बटवारा करते समय आयुके बिना सात कर्मोमें ही 'बहुभागे समभागो' इत्यादि नियमके अनुसार बटवारा करना चाहिये और आयुकर्मको अलग सब संचित द्रव्यका असंख्यातवाँ भाग.दे देना चाहिये । मान लीजिये सब संचित द्रव्यका प्रमाण ६५५३५ है और असंख्यातका प्रमाण ३२ है तो ६५५३६ में ३२ का भाग देने पर २०४८ प्राप्त होते हैं। इस प्रकार सब द्रव्यका यह जो असंख्यातवाँ भाग प्राप्त हुआ वह आयुकर्मका हिस्सा है। अब शेष रहा ६३४८८ सो इसका पूर्वोक्त विधानसे शेष सात कर्मों में बटवारा कर लेना चाहिये।
६९. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे जघन्य समयप्रबद्धकी अपेक्षा आठों कर्मों के प्रदेशोंके बँटवारेका विधान उत्कृष्ट समयप्रबद्धके बँटवारेके विधानकी तरह है। तथा जघन्यप्रदेशत्वकी अपेक्षा आठों ही कर्मों के प्रदेशोंका बँटवारा उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मके बँटवारेके समान होता है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये।
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