Book Title: Jiva Vichar Prakaran Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ रण hu ) अकायना (घणोद हिसाई के० ) जेने आधारे पृथ्वी रही वे ते घणोदधि यदि दइने वीजा पण ( या रोगा के० ) अनेक नेदो (हुंति के० ) थाय d. ए अकाय जीवोना नेद कह्या ॥ ५ ॥ 1 हवे ते काय जीवोना नेद कहे बे:इंगाल जाल सुम्सुर, उक्कासणि कणग विकुमाईच्या || अगणिजिप्राणं नेया, नायवा निजणबुझिए ॥ ६ ॥ गाथा ६ हीना बूटा शब्दना अर्थ. विॐ-विजली. आईच्या आदि. अगणिकाग्निकाय. जित्राएं = जीवोना. गाल - अंगारानो नि. जाल ज्वालानो नि. सुम्मुर = प्रासद्धि, नागे. उक्का-उस्कापातनो अनि अणि वज्रनो मार मारतां | नेचा-नेदो. परुतो अग्नि. नायबा - जाणवा योग्य. निजण निपुण, सूक्ष्म. कग कीयानो अग्नि. अर्थ :- ( इंगाल के० ) ज्वाला विनानो नि, काष्ट. प्रमुख वस्तुनुं सत्त्व ज्यारे बली जाय वे त्यारे अग्निनी ज्वालानो नाश घर जाय बे, छाने रक्त रखनी पेठे चलकित ककमा यर रहे बे ते अंगार कहेवायPage Navigation
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