Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 82
________________ (१) (अणानिहणे काले के०) अनादि अनंत कालने विषे (जिणवयणमलहंता जीवा के ) हितोपदेशरूप 'जिनवचनने जे जीवो पाम्या नथी ते (जोणी के०) चोराशी लाख संख्यावाली जे योनि तेणे करी(गहणंमि के०) महा गहन उःख देनारो तथा (जीसणे के) जयने देनारो (श्व के) हां वर्णव्यो एवो जे आ संसार तेने विषे (नमिया के) अतीत कालने विषे नटकेला,अने फरी (जमिहंति चिरं के०) आगल आगामिक कालमां पण घणुं ब्रमण करशे ॥४५॥ हवे ग्रंथकार पोताना नामनी सूचना करता ... बंता धर्मोपदेश कहे :ता संपइ संपत्ते, मणुअत्ते उल्लहे वि सम्मत्ते ॥ सिरि संति सूरि सिके, करेद नो उजमं धम्मे ॥ ५० ॥ गाथा ५० मीना बूटा शब्दना अर्थ. ता-ते कारण माटे. | सम्मत्ते-सम्यक्त्व. संपश्-सांप्रत काले. सिरि-श्री, ज्ञानादि लक्ष्मी. . संपत्ते प्राप्त थयु. संति शांति, रागादिकनो मणुअत्ते-मनुष्यपणुं. उपशम. उबहे-मुर्खनः सूरि-सूरि, पूजवायोग्य. वि-पण. | सिं-शिष्ट, उपदेश करेला. जी०६

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