Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 83
________________ (60) करेह - करो. जो = हे नव्यजीवो. उसमं-उद्यम. धम्मे धर्मने विषे. अर्थ : - ( ता के० ) ते पूर्वोक्त कारण माटे ( जो के० ) हे व्यजीवो ! ( संपइ के० ) सांप्रत या समयने विषे दश दृष्टांते करी ( दुल्हे के ० ) डुर्लन एवं जेा ( मणुत्ते के० ) मनुष्यपणुं ते ( संपत्ते ho ) प्राप्त युं बतां अने (वि सम्मत्ते के० ) तेमां पण दुर्लन जिनोक्त तत्त्वत्रयरुचिरूप सम्यक्त्व प्राप्त युं बतां (सिरिसं ति सूरि सिद्धे के ० ) श्री एटले ज्ञानादि लक्ष्मी, शांति एटले रागादिकनो उपशम, एए करी जे सूरि एटले पूज्य एवा श्री तीर्थंकर तथा गणधर ते शिष्टे करेला उपदेशरूप ( धम्मे उद्धमं करेह के० ) धर्मने विषे उद्यम करो ॥ ५० ॥ या पद्यमां कविए पोतानुं नाम सूचव्युं बे ते यावी रीतेः - श्री शांति सूरि उपदेश करे बे के शिष्टे एटले उत्तम पुरुषो यांचरण करेला धर्मने विषे उद्यम करो. एवो अन्य करवो. अथवा श्री शांति सूरिए करेला जगवद्वचनानुसारे धर्मोपदेशनो उद्यम करो. हवे या ग्रंथ सिद्धांतमांथी कहाडेलो बे एम कहे बेःएसो जीववियारो, संखेवरुईण जा - }

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