Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३) णणा देठं । संखित्तो नहरिज, रुदाई सुयसमुद्दाऊं ॥५१॥इति ॥ __ गाथा ५१ मीना बूटा शब्दना अर्थ. एसो-ए.
| संखित्तो संक्षेपथी. जीववियारो जीवविचार. उमरि-उधार कयों ने. संखेवरुईण-संदेपरुचिवंतने. रुदा अतिशय विस्तारवाला. जाणणा हेजें-जाणवाने अर्थे । सुयसमुदा-श्रुतसमुपथी. __ अर्थः-( एसो के ) ए जे (जीववियारो के) जीव विचार कह्यो ते (संखेवरुईण के) संदेपरुचि एटले खल्प मतिवाला जीवोने (जाणणा हेजं के) जाणवाने अर्थे ( रुदा के )जेना विस्तारनुं ग्रहण थश् शके नहीं एवा (सुयसमुद्दा के) श्रुतसमुख थकी (संखित्तो उहरिज के०) संदेपथी उझार करीने आ निबंध कस्यो बे. एथी या सर्व जे कांश कडं ते पोतानुं मनःकल्पित कझुनथी; परंतु सिद्धांतोमाथी बझार करीने कर्तुं ,एवी सूचना करी॥५१॥
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इति श्रीजीव विचारप्रकरणं प्राकृत- दि .. व्याख्यासहितं संपूर्णम् ॥

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