Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 28
________________ २७ ) वे ते वखते आकाशमार्गे अगणित संख्याबंध जमतां कोइ धान्यनां क्षेत्र वगेरे उपर आवीने पडे बे, ते जेटली जग्यामां आवी पडे बे तेटली जग्यानां काम पान वगेरे सर्व खाइने खाली करी नाखे बे, . ते तीन एवे नामे लोकमां प्रसिद्ध बे. ( महिय के० ) मक्षिका, ए जीवो लोकमां अति प्रसिद्ध बे, ए माखी एवे नामे उलखाय बे, उपलक्षणथी मधुमक्षिका पण जाणी लेवी. ( डंसा के० ) मांस, ए जीवो सिंधु देशमां प्रसिद्ध बे. ए घणुं करीने वर्षाकालमां ची कणी जमीनमां उत्पन्न थाय बे. ( मसगा के० ) मसक, ए जीवो लोकमां मछर एवे नासे जलंखाय बे, ए लोकमां प्रसिद्ध बे. ( कंसारी के० ) ए जीवो घणुं करीने उजम घर प्रमुखमा उत्पन्न याय बे, ते लोकमां प्रसिद्ध बे. ( कविल के० ) करोलीया ने ( मोलाई के० ) खम्मांकदी, आदि शब्द थकी पतंग प्रमुख बीजा जे चौरिंद्रिय जीवो। होय ते सर्व जाणी लेवा. ए जीवने स्पर्शनेंद्रिय, रसनेंद्रिय, घ्राणेंद्रिय तथा नेत्रेंद्रिय ए चार इंद्रियो होय बे ॥ १८ ॥

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