Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(ठ)
सुधी होय बे, अने ( यचारी गाउा पुहुत्तं के० ) गोधादिक जुजपरिसर्पना शरीरनुं प्रमाण गव्यूति पृथक्त्व पटले वे गाउथी मांगी नव गाउ सुधी होय. एवधा जीवो (गनया हुंति के० ) गर्भज बे ॥ ३० ॥ हवे संमूर्छिमनां शरीरतुं प्रमाण आवी रीतेःखयरा जुयगा धणु पुहुत्तं के० ) खेचर एटले पक्षी ने जग एटले मुजपरिसर्पनां शरीरोनुं प्रमाण धनुष्य पृथक्त्व एटले बे धनुष्यथी मांगीने नव धनुष्य सुधी होय बे, तथा ( जरगा य जोयण पुहुत्तं hu ) उरग एटले जरः परिसर्पनां शरीरतुं प्रमाण योजन पृथक्त्व पटले वे योजनथी मांगीने नव योजन सुधी होय बे, अने ( चउप्पया गाडय पुहुत्त सित्ता के० ) चतुष्पद एटले चार पगवाला जीवोनां शरीरतुं प्रमाण गाज पृथक्त्व पटले वे गाउथी मांगीने नव गाउ सुधी होय बे, एवी रीते ( समुचिमा जलिया के० ) संमूर्खिस तिर्यंच जीवोनां शरीरनुं प्रमाण कह्युं बे. केटलांएक पुस्त -- कोमां “जुयगा उरगा य जोयण पुहुत्तं" एवो पाव बे, ए प्रमाणे अर्थ करतां भुजपरिसर्पनां शरीखुं प्रमाण योजन पृथक्त्व थाय बे ते समीचीन

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