Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 67
________________ ( ६६ ) कोमीनुं ( होइ के० ) होय बे. सित्तेर लाख अने बप्पन हजार कोटि वर्षनो एक पूर्व थाय बे. एवा एक कोटि पूर्वनुं आयुष्य जाणवुं . ( परकी के० ) पक्षीनुं (पुण के० ) तेवी रीतेज ( प लियस्स असंखनागो के० ) पल्योपमना असंख्यातमा नाग जेटलं आयुष्य ( नणि के० ) कहेलुं वे. आा गर्नज तिर्यंचनुं आयुष्य जाणवुं. आ प्रकरणमां संमूर्छिम स्थलचर तथा खेचरादि पंचेंद्रियोनुं उत्कृष्टथी श्रायु कयुं नथी, पण वीजा ग्रंथोमां कहेतुं बे, ते या प्रमाणे:- 'समुनि पििद थलयर, खयर जरग नुयय जिह विश् कमसो; वास सहस्साचुलसी, बिसत्तरी तिपन्न वायाला ||१||' इति ॥ ३७ ॥ हवे सूक्ष्मादि जीवोना श्रायुष्यनुं प्रमाण कहे बे:सधे सुदुमा सादा, रणाय समुचिमा मधुस्सा य ॥ उक्कोस जहन्ने, अंतमुत्तं चिय जियंति ॥ ३८ ॥ गाथा ३० मीना बूटा शब्दना अर्थ. सबे - सर्वे. सुदुमा=सूक्ष्म. साहारा = साधारणसमुचिमा - संमूर्व्विम.

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