Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 70
________________ ( ६ए ) हवे त्रीजुं खकाय स्थिति द्वार कहे बे:एगिंदिया य सवे, प्रसंख नस्सप्पिणी सकायंमि ॥ नववऊंति चयंति, अणणंतकाया प्रांता ॥ ४० ॥ गाथा ४० मीना बूटा शब्दना अर्थ. उस्सप्पिणी = उत्सर्पिणी. | चयंति-च्यवे बे. सकायंमि= पोतानी कायाने विषे. अता अनंत उत्सर्पिणी उववर्द्धति - उपजे वे. ने अवसर्पिणी सुधी. अर्थ:- (स एगिंदिया य के० ) पृथ्वी काय, अकाय, ते काय, वायुकाय अने वनस्पतिकाय, ए जे पांच स्थावर एकेंद्रिय े ते सर्व (असंख उस्सप्पिणी के० ) असंख्य उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी सुधी ( सकायंमि के० ) तेज पोतानी कायने विषे ( उववऊंति के ० ) उत्पन्न थाय बे, अने ( चयंति tha) मरणने पामे बे. अर्थात् तेज कायम उत्पन्न इने फरी त्यांज नाश पामे बे, तथा (तकाया ha) अनंतकाय वनस्पति जीवो जेबे ते ( अताउ ho) अनंत उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी सुधी यावत् स्वकायमा उत्पन्न थने तेज कायमां नाश पाने बे ॥४०॥ एवी रीते एकेंद्रिय जीवोनी काय स्थिति कही. 1

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