Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 68
________________ मगुस्सा = मनुष्य. जहन्नें - जघन्यथी. अंतमुदुतं अंतर्मुहूर्त्त. ( ६५ ) चिय- मात्र. जियंति - जीवे बे. ! अर्थ :- ( स ० ) पृथ्वी काय, अप्काय, तेजकाय, वायुकाय तथा वनस्पतिकाय, ए सर्वे ( सुदुमा साहारणा य के० ) सूक्ष्म तथा वीजा साधारण एटले बादर निगोदरूप जे अनंतकाय जीवो बे ते छाने ( समुचिमा मणुस्सा य के० ) संमूमि मनुष्यो जे एकसो ने एक क्षेत्रोने विषे उत्पन्न थयेला गर्भज मनुष्योनांज मल मूत्र तथा वातादिकने विषे उत्पन्न याय बे ते बधा (उक्कोस ho ) उत्कृष्टथी तथा ( जहन्नेां के० ) जघन्यथी ( तमुत्तं चिय के० ) एक अंतर्मुहूर्त मात्रज ( जियंति के० ) जीवे बे ॥ ३८ ॥ उपलां बे द्वारमां जे कयुं ते गाथा वडे सूचवे बे: जंगाढणान माणं, एवं संखेवर्ड समकायं ॥ जे पुण व विसेसा, विसेस सुत्तान ते नेया ॥ ३५ ॥

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