Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 66
________________ (६५) उत्कृष्टथी (तित्तीसं सागराणि के) तेत्रीश साग- ' रोपमनी होय . एटबुं आयुष्य पांच अनुत्तर विमानोना देवोर्नु तथा सातमी नरकना जीवोनुं उत्कृटथी जाणी लेवं अने ( चउपय के) चतुष्पद एटले चार पगवाला ( तिरिय केश ) तिर्यंच जीवोनु तथा ( मणुस्सा के ) सर्व प्रकारना माणसोनुं उत्कृष्टथी ( तिन्निय पलिवमा के) त्रण पट्योपमनुं आयुष्य (हुंति के) होय बे. एवा आयुष्यवाला जीवो देवकुर्वादिक क्षेत्रोमां होय बे. अहीं पट्योपम तथा सागरोपमने विषे सूक्ष्मताथी अथवा विशेषण विशिष्टनुं ग्रहण कस्याथी देव तथा नारकीउँनु जघन्यथी आयुष्य दश हजार वर्षतुं होय बे, अने मनुष्य तथा तिर्यंच जीवोनुं जघन्यथी पूर्वनी पेठे अंतर्मुहूर्त्तनुं आयुष्य होय बे॥३६ ॥ ___ गर्नज अने संमूर्बिम ए बे प्रकारना (जलयर के ) जे जलचरजीवो ने, (उर के०) उदथी चाल: नारा जे सो बे, (जुयगाणं के०) जुजाथी चालनारा जे नोलिया प्रमुख जीवो बे, तेउनुं ( परमाज के) उत्कृष्टथी आयुष्य (पुवकोमी के०) पूर्व

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