Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 77
________________ (६) हवे पांच योनिद्वार कहे :तह चरासी लका, संखा जोणीए दोइ जीवाणं ॥ पुढवाई चनएदं, पत्तेयं सत्त सत्तेव ॥ ४५ ॥ दस पत्तेय तरूणं, चउदस बरका दवंति इयरेसु ॥ विगलेंदिएसु दो दो, चनरो पंचिंदि तिरियाणं ॥ ४६ ॥ चउरो चउरो नारय, सुरेसु मणुआण चउदस दवंति ॥ संपिंमिया य सबे, चुलसी लरका जोलीणं ॥ ४७ ॥ गाथा ४५ सीना बूटा शब्दना अर्थ. तह - तथा. चतरासी = चोराशी. लरका-लाख. संखा - संख्या. जोणी ए = योनिनी. होइ - बे. जीवाएं जीवोनी. पुढवाई - पृथ्व्यादिकनी. चाहं चारनी. पत्तेयं = प्रत्येकनी. सत्त सत्तेव- सात सात. गाथा ४६ मीना बूटा शव्दना अर्थ. चउदस-चौद. दस = दश. पत्तेय तरुणं प्रत्येक वनस्पति- लरका - लाखकायनी. | हवंति - वे.

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