Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 57
________________ (द) अनुक्रमे ( जाव रयणप्पहा के० ) यावत् रत्नप्रना नामनी पहेली पृथ्वीना नारकीर्तनां शरीरोनुं प्रमाण पोणा आठ धनुष्य ने व अंगुलनुं ( नेया के० ) जावं. एटलुं खाजाविक दे हनुं प्रमाण होय वे ते कयुं; पण एनुं वै क्रिय शरीरनुं प्रमाण तो एथी वमणुं होय बे ॥ २७ ॥ एस नारकीर्तनां शरीरोनुं प्रमाण कयुं. हवे तिर्यंच पंचेंद्रिय जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण ढी गाथाए करी कहे :जोयण सहस्स माणा, मच्चा जरगा य गनया हुंति ॥ धणु पुहुत्तं परिकसु, जुयचारी गाज पुहुत्तं ॥ ३० ॥ खयरा धणुच् पुहुत्तं, जुयगा उरगा य जोय पुहुत्तं || गाय पुहुत्त मित्ता, समुचिमा चप्पया जणिया ॥ ३१ ॥ बच्चेव गाडच्याई, चप्पया गनया मुणेयवा ॥ गाथा ३० मीना बूटा शब्दना अर्थ. जोयण = योजन. मचा = मत्स्य, मालां. उरगा-तरः परिसर्प. गलया - गर्भज. सदस्य- हजार. माणा मान, प्रमाण.

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