Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 55
________________ (ए) जोयण के)बार योजननी होय बे, अढी छीपनी वहार रहेला (तेदिय के०) कर्णशृंगालादिक तेइंघिय जीवोनां शरीरनी उंचार ( तिन्नेव गाउबा के ) त्रण गाउनी होय बे, (च के ) तथा अढी छीपनी वहार रदेला ( चारिदिय के०) मरादिक चौरिंजिय जीवोनां (देहमुच्चत्तं के) शरीरनुं ऊंचपणुं (जोयणं के) एक योजन- होय . ( अणुकमसो के) गाथाना पदना अनुक्रमे एटले बेजियने वार योजन वगेरे कहेवा ॥ २०॥ ए विकलेंशिय जीवोनां शरीरनुं प्रमाण कडं. हवे नारकी आदिक पंचेंशिय जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण कहेतो थको प्रथम नारकी जीवोनां शरीरनुं प्रमाण कहे बे. धणुसयपंच पमाणा, नेरझ्या सत्तमा पुढवीए॥ तत्तो अपणा, नेया रयएप्पदा जाव ॥श्ए॥ गाथा शए मीना बूटा शब्दना अर्थ. धणु-धनुष्य. पमाणा-प्रमाण. सयपंच-पांचसें. | नेरझ्या नारकी. -

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