Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 60
________________ नथी, केमके प्रज्ञापना तथा संग्रहिण्यादि सूत्रोथी विरुक ते ॥ ३१ ॥ अने (चजप्पया गप्नया बच्चेव गाजया के ) गर्नज चतुष्पद जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण उत्कृष्टथी व गाउनुज (मुणेयवा के०) मनाय वे. एवां मोटां शरीरना हस्ती देवकुळदिक युगलियानां क्षेत्रोमां होय ते. हवे पंचेप्रिय मनुप्यनां शरीरतुं प्रमाण __ गाथाना उत्तरार्ध वडे कहे :कोस तिगं च मणुस्सा, जक्कोस सरीर माणेणं ॥३२॥ गाथा ३२ मी उत्तरार्धना बूटा शब्दना अर्थ. कोस-गाज. उक्कोस-उत्कृष्ट. तिगंत्रण. माणेणं-प्रमाण. माणुस्सा मनुष्य. अर्थः-(मणुस्सा उकोस सरीर माणेणं के) उत्कृष्टथी मनुष्यनां शरीरचं प्रमाण ( कोस तिगं के ) त्रण कोशनुं होय . ते देवकुर्वादिक क्षेत्रोना युगलिया जाणवा ॥ ३२॥ ए मनुष्यनां देहसान कह्यां.

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