Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४५) ए वे देवलोके एक इंश , अने अगीयारमा तथा बारमा ए बे देवलोके पण एक इं . ए रीते बार देवलोकना मली दश न दे, अने पूर्वे नवनपतिना वीश तथा व्यंतरना वत्रीश अने ज्योतिषीना बे मली चोपन इंश कह्या तेनी साथे ए दश इंश मेलवीए ते वारे सर्व मली चोसठ इंश थाय. ए सर्व कल्पोपपन्न देवता कहेवाय.
हवे बीजाजेकल्प एटले आव्या गयानो आचार तेणे करी रहित ने तेने कल्पातीत देवो कहीए. तेना वली बे नेद दे. एक तो नव अवेयकना देवो अने बीजा पांच अनुत्तर विमानना देवो जाणवा.
हवे ए कल्पोपपन्न तथा कल्पातीत देवोनां स्थानक कहे जे. चौद राजलोक जे तेमां सात राज नीचे साते नारकीए करी पूख्यो डे अने सात राज उंचो . ए चौद राजलोक पुरुषने आकारे ले, तेमां नाचिने स्थानके मनुष्यलोक अने मेरुने मूले संन्नूतला पृथिवी बे,त्यांथी सातसें नेवु योजनश्री मामीने नवसे योजन पर्यंत उंचा ज्योतिषी देवो रहे बे, तेवार पनी एक राजने आशरे उंचा जश्ए तिहां दक्षिण दिशे सौधर्म देवलोक अने उत्तर दिशे ईशान देवलोक

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