Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 51
________________ (ए) अतिबाइ अतीर्थकरादि. जीवविगप्पा-जीवना विकल्प सिब्जेएणं-सिघना नेदे करी. (नेदो). समरकाया-कह्या. संखेवेणं-संदेपश्री. अर्थः-(सिधा के) सिद्ध ते सर्व कर्मोथी मुक्त थयेला जीवो, तेना (तिब अतिबा के) तीर्थकर तथा अतीर्थकरादि ( सिद्धलेएणं के०) सिझना जेदे करी (पनरस नेया के०) पंदर नेद थाय . ते पंदर नेदनां नाम नव तत्वना बालावबोध थकी जाणवां. (एए संखेवेणं के) ए पूर्वोक्त सर्व संदेपे करीने (जीवविगप्पा के ) जीवना विकल्प एटले नेद ते ( समरकाया के ) रुडे प्रकारे कह्या बे ॥२५॥ हवे जे आगल कहेवा योग्य बे ते मूल . ग्रंथकर्ता पोतेज गाथा वडे कहे . एएसिं जीवाणं, सरीरमाऊ लिई सकायंमि ॥ पाणा जोणिपमाणं, जेसिं जं अजितं नणिमो ॥२६॥

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