Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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२७ )
शाय,
अर्थ:- ( तिरिरका पंचेंदिया तिविहा के० ) ति - यंच पंचेंद्रिय त्रण प्रकारना बे, ते आ:- एक ( जलयर के० ) जलचर एटले जे जीवो पाणीमां उत्पन्न पाणीसां रहे तथा पाणीसांज नाश पामे ते जलचर जीव जाणवा. वीजा ( थलयर के० ) स्थलचर एटले जे जीवोनी उत्पत्ति, स्थिति तथा नाशनो संजय जलचरोनी पेठे पृथ्वी उपर होय ते, तथा श्रीजा ( खयरा के० ) खेचर एटले जे जीवोनी चालवानी स्थिति आकाशने विषे होय ते जाणवा. तेर्जमां प्रथम जलचर जीवना मुख्यं पांच भेद े ते आ प्रमाणे:- एक ( सुसुमार के० ) पासाना जेवा मत्स्य होय बे, ते घणुं करी सीठा पाणीना तलाव प्रमुखमां दीवामां आवे बे, वीजो (म के० ) नाना प्रकारनां जे वीजां माबलां दीगमां आवे वे ते, ए जातिना जीवो घणुं करी खारा समुद्रमां विशेष दीवामां आवे बे, त्रीजो ( कठव के० ) कछप, ए जीवो घणुं करी सीठा पाणीना तलाव अथवा खोदेला कूवाना पाणीमां दीवामां आवे बे, एनी 'त्वचा घणी कठिन होय वे अने तेमांथी, ढाल ए
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