Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 42
________________ ( ४१ ) दिशे लवण समुद्र मध्ये वे बे दाढा नकली बे ते वारे वे दिशिनी चार दाढा थइ, तेवीज रीते 'ऐरवत क्षेत्रने दक्षिणने बेडे शिखरी नामे पर्वत बे, ते पण पूर्व पश्चिम हेमवंतनी परे लांबो बे. तेमांथी पण हेमवंतनी रीते वे दिशिए मली चार दाढाउ समुद्रमां नीकली बे. एबे पर्वतनी या दाढाउ मांदेली एकेकी दाढाने विषे सात सात अंतरद्वीप बे, ते वारे व दाढाउने विषे उप्पन अंतरद्वीप थया तेने विषे पण युगलिया रहे बे, तेने अंतरीपनां मनुष्य कहीए.. ते मनुष्य एकांतरे आहार लीए बे, तथा तेमनां शरीरनी उंचाइ श्रावसो धनुष्यनी, अने पल्योपमना असंख्यातमा जाग जेटलुं तेमनुं ययु बे. ए प्रमाणे मनुष्यना पीस्तालीश नेद पूर्वे कह्या तेनी साथै ए अंतरीपना बप्पन नेद मेलवतां १०१ नेद थाय, तेने पर्याप्ता अने अपर्याप्ताए बे प्रकारे गुणीए ते वारे २०२ नेद थाय तथा वली एहीज गर्भज मनुज्यानां मल, मूत्र, श्लेष्म प्रमुख चौद स्थानकने विषे जे उपजे तेने संमूर्छिम मनुष्य कहीए. ते संमूहिम मनुष्य सर्व धुरी पर्यातिएज मरण पामे बे, माटे ए पर्याप्ताज होय, तेथी एना १०१ नेद पूर्वोक्त .

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