Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 20
________________ स्पतिकाय मूकीने (पंचवि पुढवाश्णो के) पांचे पृथि.व्यादिक (सयल लोए के०) सकल चौद राजलोकने “विपे(सुदुमा केय) सूदम (हवंति के)होय ने, (नियमा. के०) निश्चये करी.एने पांच स्थावर कहीए.ते (अंतमुदुत्ताउ के० ) अंतर्मुहूर्त्तना आयुष्यवाला होय के ने (अहिस्सा के) अदृश्य होय बे, एटले चर्मदृष्टिए देखाय नहीं. तेथीज ए सूदम कहेवाय बे ॥ १४ ॥ ए पांच स्थावर सूक्ष्म अने पांच वादर मलीने दश नेद थया, अने प्रत्येक वनस्पतिकाय ते बादरज होय ,पण सूक्ष्म होय नहीं तेश्री प्रत्येक वनस्पतिकायनो एक जूदोज नेद होवाथी सर्व अगीयार भेद थाय ने. ते अगीयार पर्याता तथा अगीयार अपर्याता मलीने वावीश नेद स्थावर संसारी जीवना कह्याने अने वीजासंसारी उस कहेवाय ,तेना मूल चार नेद लेते आः-बेइंडिय, तेइजिय, चौरिंजिय तथा पंचेंजिय. तेउमांना प्रथम बेजिय त्रस जीवना छेद कहे जेः संख कवडय गंडुल, जलोय चंदणग अलस लहगाई। मेहरि किमि पूछरगा, बेइंदिय माझ्यादाई ॥ १५ ॥

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