Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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रनी त्वचा अथवा बाल, (कहा के०) सर्व प्रकारचें
काष्ठ अथवा लाकडं, (मूलग के० ) हुं। तलीयानुं , थरू, (पत्ताणि केस) सर्व जातिनां पांदमां, (वीयाणि
के) सर्व वीज; ए साते स्थानक प्रत्येक जिन्न जिन्न जीवरूप होवामी एउने प्रत्येक वनस्पतिकाय कहीए. एवी रीते ए बादर पृथिव्यादिक पांचे थावरना बेद विवरीने कह्या ॥ १३ ॥ • हवे पांच स्थावर सूदमनुं वर्णन करे :- .
पत्तेयं तरु मुत्तं, पंचवि पुढवाइणो संयल लोए । सुदुमा हवंति नियमा, अंतमुहुत्ताज अहिस्सा ॥१४॥
गाथा १४ मीना बूटा शब्दना अर्थ. पत्तेयं तर प्रत्येक वनस्पति- | सुडमा सूदम. .
काय हवंति-होय . सुत्तं-सूकीने.
नियमा-निश्चये करी. पंचवि-पांचे.
अंतमुडुत्त-अंतर्मुहूर्त. पुढवाइणो-पृथिव्यादिक. . आज-आयुष्य. सयल-संकल.
| अहिस्सा अदृश्य(चर्मदृष्टिए लोए (चौद राज) लोकने विपे. देखाय नहीं तेवा.)
अर्थः-(पत्तेयं तरु सुत्तं के) ए पूर्वोक्त प्रत्येक वन

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