Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 24
________________ घणा होय , ने ए कानमा पेसी जश्ने माणसने घणी ..इजा करे ने, एम कहेवाय बे, (संकण के०) माण'सना सुवाना विगनामां अथवा खाटला प्रसुखनी नवारसांजे जीवो उत्पन्न थाय ने तेने मांकन कहे जे, (जूश्रा के०) यूका, ए जीवो माणसनामाथाना वालमां उत्पन्न थाय ठे, अथवा माणसनां कपकांसां उत्पन्न थाय , एटले एमाणसना शरीरनामेलमांथी उत्पन्न थाय , एने कही तथा गुजराती भाषामां लीख कहे ठे, ते संस्कृत लिद शब्दनो अपभ्रंश जे.(पिपीलि के) एने पिपीलिका अथवा कीमी कहे , एनी राती अने काली एवी घणी जाति होय,ते लोकमां प्रसिक वे. (उद्देहिया के) उद्देहिका,एने वाल्मिक जीव पण कहे . ए जीवो वृक्षमा, काष्ठमां अथवा गृहमांज्यां ज्यां प्रवेश करे ने त्या त्यां पोतानुं शरीर रहेवा पूरतुं घर वनावीने तेमांथी तेवृक्षादिकने खाती खाती चाली जाय वे. (य के) वली (मकोमा के०) मत्कोटिका अथवा मंकोमा,ए जीव घj करीने बावलना कामना थममां उत्पन्न थाय बे,अथवा गोल प्रमुख मिष्ट पदार्थ ज्यां होय त्यां थाय जे. (इल्लिय के) इखिका, एजीव

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