Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 17
________________ ( १६ ) रुगं च विन्नरुदं || साहारणं सरीरं, तविवरीच्यं च पत्तेयं ॥ १२ ॥ गाथा १२ सीना बूटा शब्दना अर्थ. गूढ - बानां. अहीरुगं - तांता विनानं. निरुह बेदीने वाव्याथी फ सिर- कणसालां. संधि - सांधा. रीने जगे ते. पर्व- गांग. समनंग-नांग्याथी जेनां सरखां वे फासीयां तaिati - ते थकी विपरीत लक्षणवाली. शकतां होय. | पत्तेयं प्रत्येक वनस्पतिकाय. अर्थ:- ( सिर के० ) कणसां प्रमुख शिर, (संधि ho) सांधा अथवा नसो, (पवं के० ) पर्व अथवा गांगः एत्रणे जे कामनां (गूढ के० ) गुप्त बानां होय एटले दीठासां न यावतां होय ने (समजंग के० ) नांग्याथी जेनां सरखांबे फासीयां यह शकतां होय, ( अहीरुगं के०) तंतु रहित जेमां तांता होय नहीं, (च के० ) पुनः एटले वली (बिन्नरुहं के०) जे बेदी ने फरी वावीए तो उगे, ए सर्व प्रकारनां वृक्षोने (साहारणं सरीरं के० ) साधारण वनस्पतिकायनां शरीर कहीए, अने एज अनंतकाय पण कहेवाय बे. ( तविवरी

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