Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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१९५/ कायाणं ॥ तसिं परिजाणण, लकण. मेयं सुए मणियं ॥११॥
गाथा ११ मीना बूटा शब्दना अर्थ. इच्चायो-इत्यादिक. | परि सारी रीते, समस्त प्रकारे. अणेगे अनेक.
जाणणचं-जाणवाने अर्थ. हवंति होय .
खरकणं लक्षण. नेया-जेदो.
एयं-आ. ठाणंतकायाणं-अनंतकायना. | सुए-सूत्रने विषे. तेसि तेमने.
नणियं-कहेलु ने. अर्थः-(चाश्णो के) इत्यादिक ( अणंतकायाणं के)अनंतकाय जीवोना पिंक, कचूर तथा गिरिकर्णिकादिक (अणेगे के०) अनेक (नेया के) नेदो (हवंति के) होय , ( तेसिं के) ते अनंतकाय जीवोने (परिजाणण के०) सारीरीते जाणवाने अर्थे ( एयं के०) आ वदयमाण एटले जे आगल कदेशे ते (लकणं के०) लक्षण (सुए के) सूत्रने विषे (चणियं के) कहेढुं ते ॥ ११ ॥ हवे अनंतकाय वनस्पतिजीवोनुं लक्षण कही बतावे बे.
गूढ सिर संधि पवं, समन्नंगमही

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