Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ "(१३) गाथा १० मीना बटा शब्दना अर्थ. कोमल कोमल, जेमां वीज न योहरि सर्व जातनो पोर. थयां होय ते. कुंआरि-कुंवार. फल-फल. गुग्गुलि-गुगल. सधं-सर्व. गलोय-गलो, ग. गूढ-गनी. पमुहाप्रमुख. सिराइ-कणसला आदि. आश्-आदि. सिणा-शणादि. चिनरुहा-ठेद्यां थकांवाव्याथी पत्ताई-पांदमां. फरी उगे ते. अर्थः-(कंदा केण्) सूरणादि सर्व जातनां कंद,. ( अंकुर के) बहार नीकलेला अंकुर, (किसलय के७) सर्वे जातिनां कुंपलना नवा टसा फूटे ते पातरां जाणवां.(पणगा के०)पांच वर्णनी फुगी, (सेवाल के) जे पाणीनी उपर रंग रंगनी लील थाय ने ते, (जूमिफोमा के ) वर्षाकालमां बनने आकारे पृथ्वीमांथी नीकले बेते.ते बिलामीना टोप एवे नामे उलखाय जे. (अ के) वली ( अब्बयतिय के) आकत्रिक एटले लीबुं आठ, लीली हलदर तथा लीलो कचूरो, (गजर के० ) गाजर, (मोब कै) मोथ, (वबुला केण) वंथुलो नामे शाक विशेष, (थेग के)' धासुरा, थेगी,(पवंका केण) ए नामर्नु शाक विशेष,

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97