Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 8
________________ (ত महिला = वरसादनी फरफर, | नेत्रा -नेदो.. धुमरीनुं पाणी. गा=अनेक. उस्सा कायना. * इंति =थाय ते. घणोद हिमाई - घनोदधिश्रादि. अर्थ :- ( नोमं के० ) कूपादिनुं पृथ्वीमां रहेलुं तथा शिरोपानीय, एवधुं भूमिजल कद्देवाय बे, (अंतरिकमुदगं के० ) सरोवरादिकने विषे जे मेघनुं पाणी जराय ने ते अंतरिक्ष उदक कहेवाय बे, (जैसा के० ) उसनुं पाणी ए तुषार अथवा काकल पण कदेवाय बे, ( हिस के० ) हिस पड्याथी जे बंधार जाय बे ते पाणी, ( करग के० ) वर्षातुमां मेघ पतां वायुना योगे पाणी वंधाइ कठिन थइने धोला पापापना कटका जेवा पृथ्वी उपर पडे बे ते करा अथवा करक कहेवाय बे, ( हरित के० ) उगेला घास प्रमुख वनस्पतिना मोर अथवा मात्र प्रमुखनां पांदगांने बेंडे जे पाणीनां बिंदु थाय बे ते हरितनु कवाय वे, ( महिया के० ) आकाशने विषे कोइ समये वादल यह आवे बे तेना योगे अति सूक्ष्म जीणी जीणी पाणीनी बूंदो पडे बे ते महिका अथवा धुमरीनुं पाणी कहेवाय बे, एवी रीते (उस्स

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