Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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में, (जाल के० ) ज्वालानो अग्नि, (सुम्सुर के) अग्मिनी ज्वालामांधीजे सूक्ष्म कण नीकले ते त्रासद्धि अथवा नाठो कहेवाय बे, (उका केप) कोश्क कालने विपे आकाशमाथी अश्विनी वृष्टि थाथ । ते उल्कापातनो अग्नि कहेवाय ने, (असणि के०) वज्रनो सार मारतां तेमांथी अग्नि पडे मे ते अशनि कहेवाय , ( कणग के ) कोश्क कालने विषे
आकाशमां अग्निना तणखा उमता देखाय ने ते कनक एटले कणीबानो अग्नि कहेवाय बे, (विज्जुमाया के) विजली आदिक ते वर्षातु प्रमुख को पण तुमा ज्यारे मावठं थाय ने त्यारे को वखते आकाशथी विजली पृथिवी उपर पड़े लेते विद्युत्पात कहेवाय , इत्यादि (अगणिजियाणं के) अग्निकाय संसारी जीवोना (नेया के) नेदो ते (निजणबुद्धिए के) निपुण एटले सूक्ष्म बुद्धिए करी (नायबा के) जाणवा योग्य वे ॥६॥
हवे वायुकाय जीवोना नेद कहे जेःजनामग जकलिया, मंडली मह सुक्ष

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