Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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की। अन्त में आपसे यही अपेक्षा रखती हूँ कि अध्ययन के क्षेत्र में आपका मार्गदर्शन मुझे सदैव प्राप्त होता रहे ।
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ग्रन्थ की पूर्णाहूति के अवसर पर पाटण निवासी पण्डित चन्द्रकान्तभाई एवं चेन्नई निवासी डॉ. ज्ञान जैन के सुझावों ने शोध-प्रबन्ध को निर्दोष बनाने में सहायता की है। मेरे लक्ष्य तथा संकल्प को प्रोत्साहित करने वाले श्रीमान प्रेमसा गुलेच्छा, सुरेशसा ओसवाल, नवरतनसा बोहरा, चुन्नीलाल कोठारी, हस्तिमलसा मुथा, कैलाशसा छाजेड़, ललितसा मेहता, वीरेन्द्रसा बागरेचा, राजूसा सेठिया, संतोषसा बरडिया, विजयसा संचेती, लक्ष्मण कवाड, भूषणजी शाह और कोमल नाहर आदि सभी की आत्मीयता के प्रति अनुगृहीत हूँ, जिनका अध्ययन के दौरान सराहनीय सहयोग रहा।
अध्ययनकाल में ‘प्राच्य - विद्यापीठ, शाजापुर के रामसा तथा प्रवीणसा का सहयोग प्रशंसनीय रहा है।
विंशेष रूप से साधुवाद देती हूँ सुश्री नीलम चौरडिया, शिल्पा बालड़, बरडिया, ममताजी तथा सरोजजी कोठारी को, जिनकी मेरे शोध कार्य के निष्पादन में प्रचुर सहायता मिली है।
इस शोध-प्रबन्ध को कम्प्यूटर पर मुद्रण का कार्य करने में राजा 'जी'. ग्राफिक्स, शाजापुर के श्री शिरीष सोनी एवं प्रूफ - संशोधन में श्री चैतन्यकुमारजी सोनी शाजापुर का विशिष्ट सहयोग रहा है। इनको भी धन्यवाद ज्ञापित करती हूं। अन्त में, शोध-: - ग्रन्थ के प्रणयन में ज्ञात-अज्ञातरूप से जो भी सहयोगी रहे हैं, उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ ।
मैंने इस शोध-प्रबन्ध को प्रामाणिकतापूर्वक पूर्ण करने का प्रयत्न किया हैं, फिर भी जो कुछ भी शास्त्र - विरुद्ध लिखने में आया हो अथवा लेखन, प्रूफ संशोधन आदि में कुछ त्रुटियाँ रह गई हों, तो उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ।
साध्वी प्रियश्रद्धांजनाश्री
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