Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji
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मुझे इस स्तर तक पहुँचाने में जिनकी सतत प्रेरणा रही और आत्मीयता के साथ इस लेखन-कार्य में जिनका सहयोग मिलता रहा, ऐसे परममनीषी, प्रज्ञा-सम्पन्न, मरुधरमणि, गुरुदेव उपाध्यायप्रवर प.पू. मणिप्रभसागरजी म.सा. के पादपद्मों में भी हृदय से सविधि वन्दना करती हूँ। __प्रातः स्मरणीया, सरलहृदया प.पू. प्रेमश्रीजी म.सा. तथा प.पू. तेजश्रीजी म.सा. के दिव्याशीष से यह शोध-यात्रा सफल रही, उन्हें करबद्ध वन्दन करती हूँ और आपसे यही अपेक्षा करती हूँ कि आपका दिव्याशीष सतत मुझ पर रहे, जिससे मैं आत्म-साधना तथा आध्यात्मिक विकास के प्रगति-पथ पर आगे बढ़ती रहूँ।
अपने इस शोध-कार्य में जिनके ज्ञानपुंज एवं तपोपुंज के पावन परमाणु सतत मिलते रहे, जिन्होंने मुझे प्रतिपल विद्या साधना तथा तपोमय-जीवन जीने के लिए प्रेरणा दी और व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक-शिक्षण के पथ पर अग्रसर होते हुए उत्तरोत्तर आगे बढ़ने की हितशिक्षा दी तथा जिनके वरदहस्त का स्पर्श पाकर मैं इस कार्य को पूर्ण कर सकी, ऐसी ममजीवनरूपी बगिया में संयम-पुष्प खिलाने वाली सरलमना, शासनदीपिका, गणरत्ना, मातृहृदया, पार्श्वमणितीर्थप्रेरिका, वर्धमानतपाराधिका प.पू. गुरुवर्या सुलोचनाश्रीजी म.सा. एवं प.पू. गुरुवर्या सुलक्षणाश्रीजी म. सा. के चरण-सरोजों में श्रद्धा-भक्तियुक्त वंदन अर्पित करती हूँ। आपने मेरे संयमी-जीवन के प्रथम दिन से लेकर आज तक अध्ययन हेतु सम्पूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध करवाईं, जिसके परिणाम स्वरूप मैं आज यहाँ तक पहुँची हूँ। आपके वात्सल्य एवं प्रेरणा के ऋण से मैं कभी भी उऋण नहीं हो सकूँगी। मैं अपने इस शोध-ग्रन्थ को अंजलीबद्ध होकर आपश्री के चरण-कमलों में समर्पित करती हूँ।
सेवाभावी, विशालहृदया, ममभगिनी प्रीतियशाश्रीजी म.सा. को भी नमन करती हूँ, जिनकी प्रेरणा से मेरी अभिरुचि अध्ययन के क्षेत्र में हुई, जिनके द्वारा बचपन से ही मुझे मातृछाया-सा साया मिलता रहा है, साथ ही इस पावन-प्रसंग पर प.पू. प्रीतिसुधाश्रीजी, पू. प्रियस्मिताश्रीजी, पू.प्रियलताश्रीजी, पू. प्रियवंदनाश्रीजी, . पू. प्रियकल्पनाश्रीजी, पू. प्रियरंजनाश्रीजी, प्रियस्नेहांजनाश्री, प्रियसौम्यांजनाश्री,
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