Book Title: Jinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Author(s): Priyashraddhanjanashreeji
Publisher: Priyashraddhanjanashreeji

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Page 13
________________ कृतज्ञता ज्ञापन मुझे यह व्यक्त करते हुए अत्यन्त हर्ष की अनुभूति हो रही है कि 'जिनभद्रगणिकृत ध्यानशतक और उसकी हरिभद्रीय टीका : एक तुलनात्मक अध्ययन' नामक मेरे शोध-ग्रन्थ का लेखन कार्य व्यवधानरहित सम्पन्न होने जा रहा है। लेखन कार्य की सम्पन्नता के इस अवसर पर सर्वप्रथम मैं उन अनंत उपकारी शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान् के श्रीचरण-कमलों में अनन्त-अनन्त आस्थायुक्त नमन करती हूँ, जिनकी कृपा से अनेकानेक भव्यात्माओं का उद्धार हुआ चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर तथा उनके शासन की भी मैं ऋणी हूँ कि उनके पावन-पवित्र जिनशासन में मुझे संयम-साधना का अवसर मिला। मेरे परमाराध्य गुरुदेव, मेरी अनन्त आस्था के केन्द्र, प्रातः स्मरणीय चारित्रचूड़ामणि, युगप्रधान प.पू. चारों दादा गुरूदेवों के चरणाम्बुजों में कोटि-कोटि वन्दन करती हूँ, जिनकी दिव्य कृपा सदैव बरसती रहती है। नतमस्तक हूँ मैं आगम-परम्परा के पोषक आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के प्रति, जिनके ग्रन्थ-रत्न पर यह शोध-कार्य करने का मुझे अवसर मिला। उनकी असीम कृपा से उच्छलित होती ध्यानमूलक उर्मियों का संस्पर्श करते हुए मेरा यह लेखन-कार्य निर्विघ्न रूप से पूर्ण हुआ, अतः मैं उनके प्रति श्रद्धावनत हूँ। जिनके पुण्य-प्रताप तथा अदृश्य आशीर्वाद से मेरा यह शोध-कार्य सम्पन्न हुआ, जन-जन के श्रद्धाकेन्द्र, प्रज्ञापुरुष प.पू. श्रीमजिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा. को मैं श्रद्धायुक्त वन्दन करती हूँ। प्रस्तुत शोध-कार्य की पूर्णता के इस पावन अवसर पर आचार्य भगवंत प.पू. कैलाशसागरसूरीश्वरजी म.सा. को भी मेरा भाव भरा नमन। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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