Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 12
________________ अज्ञान (प्ररुपणा) अचित तव्यतिरिक्त राग ३.३६८ ब। ब, २४१४ ब । प्ररूपणा-बन्ध ३.१०६, बन्धस्थान अज्ञान (प्ररूपणा)-बन्ध ३.१०५, ३.१७५ अ, ३.३३८ ब, ३.११३, उदय १.३८४, उदयस्थान १.३६३ अ, बन्धस्थान ३.१०८, ३.११३, उदय १.३८३, उदय उदीरणा १४११, उदीरणास्थान १.४१२, सत्त्व स्थान १३६३ अ, उदीरणा १४११ अ, उदीरणा स्थान ४.२८४, सत्त्वस्थान ४३०१, ४३०६, त्रिसयोगी १.४१२, सत्त्व ४२८३, सत्त्वस्थान ४.२८७, ४३००, भग १.४०७२ । सत् ४२४०, सख्या ४.१०७, क्षेत्र ४.३०५, त्रिसयोगी भग १.४०७ अ, सत् ४.२३३, २ २०५, म्पर्शन ४४६०, काल २.११५, अन्तर सख्या ४.१०५, क्षेत्र २.२०४, स्पर्शन ४४८८, काल ११००, भाव ३२२१ ब, अल्पबहुत्व १.१५१ । २११३, अन्तर १.१५, भाव ३ २२१ अ, ३.३०४ ब, अचक्षु दर्शनावरण--२.४२० अ। प्ररूपणाएँ---प्रकृति अल्पबहुत्व १.१५० अ। २४२० अ, ३८८, स्थिति ४.४६०, अनुभाग अज्ञान निग्रहस्थान-१३८ अ । १.६४ न, प्रदेश ३.१३६ । बन्ध ३६७, बन्धस्थान अज्ञान परीषह-१३८ अ, परीषह ३.३३ ब, ३३४ ब। ३१०६, उदय १३७४ ब, उदयस्थान १३८७ ब, प्रज्ञा परीषह ३११४ ब । उदीरणा १.४११ ब, सत्त्व ४.२७८, सत्त्वस्थान अज्ञानवाद-१.३८ अ, एकान्त १.४६५ अ । ४२६४, त्रिमयोगी भग १.३६४ अ, संक्रमण अज्ञानान्धकार-२.२२ ब । ४.८४ ब, अल्पबहुत्व १.१६८ अ। अज्ञानी-अनुभव १.८४ ब, कर्ता २.२२ ब, २२६९ ब, अचर ज्योतिष विमान-निर्देश २३४६ ब, संख्या २.३४८ ज्ञान २२६५ अ, मिथ्यावृष्टि १.३७ अ, २२६६ ब, ब, अवस्थान २.३४८ ब । २.२७३ अ, ३३०४ब, मोक्षमार्ग ३ ३३७ ब, राग __ अचल-१३६ ब, गणधर २.२१२ ब, २२१३ अ, जीव ३.३६८ अ, हिंसा ४५३४ अ । प्रदेश २३३६ अ, नारायण ४२६ अ, प्रतिमा अज्ञायक-३ ३०३ ब । २१३९ अ। बलदेव ४.१६ अ, वासुपूज्य नाथ अग्र--१३८ ब, एकाग्र १.४६५ ब। २३६१ । अग्रदेवी-ज्योतिष देव २ ३४६ अ, वैमानिक देव ४ ५१२. अचलग्राम-नगर ३.२७६ अ । ४.५१३। अचलप्र-१.३६ ब। अग्रनिर्वत्ति क्रिया-४.१५२ अ । अचलमात्रा-१.३६ ब। अग्रप्रलम्ब-२.३६६ अ। अचलयोग-४.४१७ अ। अग्रबीज-३५०२ ब, ३५०६ अ । अचल स्तोक-१.३६ ब। अग्रमुख-१.३६ अ। अचलात्म-१३६ ब । काल-प्रमाण २.२१६ ब, अग्रय--श्रुतज्ञान ४६० अ। २२१७ अ । अग्रवया-१३६ । अचला देवी-विद्युत्प्रभ गजदन्त की देवी ३.४७३ अ, अग्रस्थिति-1-४.४५७ अ। अकन ३.४५७ । अग्रहण वर्गणा-३.५१३ अ, ब, ३.५१४ अ। अचलावली-१.३६ ब, आनली १.२७६ अ। अग्रायणी-१.३६ अ, ४६७ ब, ४६८ ब । अचलित-३ १६ अ। अग्राह्य वर्गगा-३.५१३ अ-ब, ३.५१४ अ। अचाक्षुष-४.४३८ ब । स्कन्ध ४४४७ ब । अग्रोद्यान-२३८३ । अचार-अभक्ष्य ३ २०२ ब । अघ-१.३६ अ, ग्रह २.२७४ अ। अचारित्र --अध्यवसान १५२ ब । अघनधारा- गणित २.२२६ अ। अचिता--३.२६२ अ। अधनमातृका धारा--गणित २.२२६ अ। अचितित-मनःपयर्य ज्ञान ३.२६५ ब, ३.२६७ अ । अघाती-अनुभाग १६० ब, प्रकृति ३.६१ ब, वेदनीय अचित्त-१३६ ब, काल २.८१ ब, गुणयोग ३.३७६ अ, ३५६४ अ। पाहुड ३.१५६ ब, पूजा ३७४ ब, ३.८० अ, बन्धक अघोर-ऋद्धि १.४४७, १.४५४ अ, गुण ब्रह्मचर्य १.४४७, ३.१७६ अ, भाव ३.२१८ ब, योनि १.३६ ब, १४५४ अ, १.४५५ अ, १.४५६ अ, गुण ब्रह्मचारी ३.४८७ अ, वर्गणा ३.५१६ ब, ३.५१८ अ, शल्य ३.२०४ अ। ४.२६ ब, सचित्त ४.१५८ अ । अचक्षदर्शन-अनुभव १.८१ ब, दर्शनोपयोग २.४१३ अ, अचित्त तव्यतिरिक्त-अन्तर १.३ ब। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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