Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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साध्वीजी के स्वभाव में 'सौम्यता भी है और 'गुण' का निधान भी इसीलिए 'सौम्यगुणाजी' के रूप में उन्होंने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति का उत्कृष्ठ उदाहरण जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास लिखकर प्रस्तुत किया है।
प्रांजल परिश्रम के कुछ अवसरों का मैं भी साक्षी हूँ, अतः अन्तरतम से मानता हूँ कि साध्वीजी का यह ज्ञान-पुरुषार्थ भाव से प्रणम्य है ।
स्वाध्याय सौम्याजी का स्वभाव बन गया है. प्रशस्त योग की इस प्रक्रिया का उन्होंने खूब अभ्यास किया है. सांसारिक रिश्तों के मायने में सौम्याजी मेरी चचेरी बहन है, अतः उनकी उपलब्धि मेरे लिये विशेष गौरव का विषय है मुझे विश्वास है कि उनका यह परिश्रम अनेक जिज्ञासुओं का पथदर्शक बनेगा. यह शोध-ग्रन्थ विधि-विधान के संदर्भ में समाज को साध्वीजी की अमूल्य भेंट है ।
ज्ञान के क्षेत्र में तृप्त होकर कभी रुकना नहीं होता, अतः अपनी मंगल कामनाएँ अर्पित करता हुआ यह अपेक्षा करता हूँ कि सौम्यगुणाजी प्राचीन वाङ्मय के शोध खोल के रूप नये नजराने जिनशासन को अर्पित करती रहें ।
- मुनि विमलसागर
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