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मुक्ति जैसे प्रान्दोलन भी इन्हीं सूत्रों मे मनुस्यूत थे। इन सूत्रों में जीवन का शाश्वत मूल्य छिपा हुआ है । मानवीय दृष्टिकोण से प्रोतप्रोत ये सूत्र विश्वबन्धुत्व को अपने प्रक में छिपाये, माज भी उतने ही मावश्यक हैं जितने पहले थे। भाज के परमाणुयुम मे तो इन सूत्रो को जगाने की कही अधिक प्रावश्यकता प्रतीत होती है । इसलिए महावीर के धर्म की उपयोगिता पर विशेष प्रकाश डाला जाना चाहिए ।
यहां यह उल्लेखनीय है कि तीर्थंकर महावीर का सुसम्बद्ध जीवन-चरित्र लगभग 8-9 वी शती में लिपिबद्ध हुआ । दिगम्बर परम्परा में तिलोयपति मौर विसट्टिमहापुरिसगुणालकार का प्राधार लेकर गुणभद्र ने उत्तरपुराण (शक सं. 820) में उनकी सक्षिप्त जीवन रेखाऍ प्रस्तुत की । श्वेताम्बर परम्परा मे प्राचाराम, सूत्रकृताग यादि प्राकृत जनागामों से छुटपुट उद्धरणो का आधार लेकर कल्पसूत्र की रचना हुई । लागे इसी का प्राधार बनाकर शीलाकाचार्य, हेमचन्द्राचार्य प्रादि जैसे विद्वानो ने अपने ग्रन्थो का निर्माण किया । पालि त्रिपिटक मे कुछ थोड़े से उल्लेख अवश्य मिलत है । पर वे उनके साधना काल से सम्बद्ध है । वैदिक साहित्य में महावीर का कोई प्राचीन उल्लेख नहीं मिलता । यह भ्राश्चय का विषय है । इसलिए उत्तरकाल मैं जो भी ग्रन्थ लिखे गये उनमे ऐतिहासिकता के साथ ही चमत्करात्मक तत्त्वों ने भी प्रवेश कर लिया जिनका विश्लषरण करना भी प्रावश्यक है ।
प्रायः प्रत्येक धर्म और संस्कृति में युगपुरुष हुए हैं। समय के प्रवाह में उन युग पुरुषों के जीवन प्रसगो के साथ चमत्कार जाड़ दिये गये है। इन चमत्कारो को प्रातिहाय अथवा अतिशय कह दिया जाता है मोर फिर घटनाम्रो के साथ उनकी प्रभिन्नता स्थापित कर दी जाती है । यह सब एक घोर उस महामहिम व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धा भोर भक्ति का प्रदर्शन है तो दूसरी घोर लेखक के ऐतिहासिक ज्ञान की न्यूनता का प्रतीक है। यह भी मानवीय स्वभाव है कि जब तक किसी के साथ चमत्कार नहीं जुड़ेगा तब तक उसका अपेक्षित प्रतिष्ठा नही मिलेगी। यही कारण है कि महावीर के जीवन की हर घटना को भक्त साहित्यकारो न मसाधारण बना दिया । इस प्रसाधारणता की भी एक सीमा होती है । पर जब उसका भी प्रतिक्रमण हा जाता है तो वह अविश्वसनीय-सी बन जाती है । भ० महावीर की जीवन घटनाओ मे भी चमत्कार का प्राधिक्य कम नही । अत: प्रावश्यक यह है कि उनके ऐतिहासिक रूप को खोजने का प्रयत्न किया जाय । यहाँ हमने ऐसी घटनाओ को ही अपने विश्लेषण का विषय बनाया है ।
भ० महावीर मौर बुद्ध के समय ब्राह्मण संस्कृति ह्रास की पोर जा रही श्री और त्रियों का प्राबल्य बढ़ रहा था वैदिक विचारधारा मे जो विषमता और हिंसा बहुल क्रियाकलाप थे उनके विरोध में इन महापुरुषों ने अपने क्रांतिकारी