Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 84
________________ इस परिया के माधार पर यह कहा जा fter में पृथ्वी का uses प्रमुख है। इस कप में बre सम्मिलित है- 1. पृथ्वी पर समस्त व अण्डों और महासागरों के तल । 2. पृथ्वीतल से थोड़ी गहराई तक का सीमा प्रभावकारी पर्छ । 3. वायुमंडल, विशेषतः वायु मंडल का निचला पर्व, जिसमें जलवायु की विभिन्नता होती हैं । 4. पृथ्वी के सौर सम्बन्ध । पृथ्वी को केना में रखकर जर्मनी, फांस, अमेरिका सोवियत संघ प्रादि देशों में काफी शोष हुये हैं और हो रहे हैं। वहां के विद्वानों की भौगोलिक विचार धाराओं को हम एक दूसरे की परिपूरकता के संदर्भ में समझ सकते हैं । उनके अध्ययन में दो पक्ष उभरकर सामने माते हैं- 1. वातावरण प्रौर परिस्थिति विज्ञान 2. प्रादेशिक विभिन्नतायें और मानवीय प्रगति तथा कल्यास में भागतायें और प्रसंतुलन । इस संदर्भ में जब हम प्राचीन भूगोल मौर प्रर्वाचीन भूगोल की दीवा करते हैं तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि प्राचीन भूगोल कतिपय ढोकापनों पर प्राधारित रहा है और माधुनिक भूगोल वैज्ञानिक तथ्यों पर बल है मानवीय साधनों की क्षमता और योग्यता पर अधिक बल दिया जाता है । प्राचीन भूगोल प्रार्थिक प्रगति से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं रखता जबकि आधुनिक भूगोल का तो यह केन्द्रीय तत्व ही है। इसलिए माधुनिक यूगोल को व्यावहारिक स applied Geography कहा जाने लगा है। इसमें मुख्य रूप से 1.हार---Group Gehaviour तथा व्यावहारिक क्षेत्र में मानसिक समस्यसेवन जैसे तत्वों पर विशेष विचार किया जाता है । प्रारंभ से ही भूगोल का उद्देश्य और उपयोग व्यक्ति और साज का साधन रहा है चाहे वह प्राध्यात्मिक रहा हो या लौकिक । प्रायुविक भूनील में प्राध्यात्मिक दृष्टि का कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। इसलिए व्यावहारिक गौन की परिभाषा साधारण तौर पर इस प्रकार की जाती है-'साब की 'तयों की तियों के लिए भौगोलिक वातावरण के समस्त साधनों क # पूर्ण उपयोग करने के लिए भौतिक प्रचार-विचार ज्ञानपद्धतियों एवं कों का है व्यावहारिक उपयोग ही मवहारिक सूत है ।", T परिवारकी का उपयोग समाज 197 के दिन के लिए किया है और परिधि में नि 1

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