Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 127
________________ 126 * में दो उसका सारा परिवार बिल उठे । फोन, या और ईर्ष्या का माना तो परिवार का हर सदस्य सामंजस्य के बातावरण में फूला न समाये । महावीर मे कहा कि वैर से पैर की शांति नहीं होती, कितनी सुन्दर बात है। प्राय प्रायः हम देखते हैं कि बुराइयां हमारी संकीर्णता के कारण होती हैं और ये संकीतायें इतने बंरों को जन्म दे देती है कि उससे परिवार के सारे सदस्य रसको ही बसे जाते हैं, सुलझ नहीं पाते । यदि हम महावीर की वाणी का अनुगमन करें तीर के स्थान पर प्रेम का वातावरण प्रस्तुत कर सकेंगे जिससे परिवार विधटन के कवारों से बच सकेगा । जहां तक सुसंस्कार जाग्रत करने की बात है, यह उत्तरदायित्व विशेष रूप से महिलाओं का है। छोटे-छोटे बालको का जीवन-निर्मारण उनकी माताभो पर निर्भर करता है । हमारी प्रादर्शनिष्ठा बालकों के सुकोमल जीवन को सही मार्ग की घोर प्रेरित कर सकती है । चारित्रिक विकास की दृष्टि से वालकों के समक्ष मादर्श महा पुरुषों की जीवनी कहानी के रूप में बतलाकर उन्हे सुपथ पर असर कर सकते हैं । जीवन का स्वरूप मर्यादायों का पालन करना है। जिस जीवन में मर्यादा नहीं वह जीवन की परिभाषा से बिलप स्थिति कही जा सकती है। नदी को मर्यादा के समान नारी का जीवन भी किसी प्रकार की मर्यादाओं से बंधा रहता है । उसे हर क्षरण अपनी मर्यादाओंों पर ध्यान देना मावश्यक है । यदि वह उन मर्यादानों का बंधन करके " माडनं सर्व" बनना चाहे तो परिवार को जलाये बिना उसे शांति नहीं मिल सकती । + हमें परिवार को जलाना नही, बनाना है, मिटाना नहीं उठाना है । इस स्थिति में पहुंचने के लिए नारी वर्ग के हर प्रतिनिधि को अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। उसे शिक्षा के हर क्षेत्र में अपने पूरे पुरुषार्थ से भागे बढ़ना है । feer के बिना उसकी कोई गति नहीं । जहां गति नहीं, वहां जीवन नही । नारी को अपना जीवन सही रूप से जीना है । प्रसन्नता की बात है कि भाव का नारी वर्ग दिसा के क्षेत्र में पुरुष वर्ग से कम धागे नहीं बढ़ा । इसका प्रमाण हमारी हर परीआमों के परीक्षाफल हूँ। वह भौतिक शिक्षा के साथ ही प्राध्यात्मिक शिक्षा की ओर भी काफी बड़ा हुआ है। परन्तु नारी की कुछ अपनी समस्यायें हैं जैसे बहेज-प्रथा, परवा प्रथा, free areन इत्यादि, जिनका समाधान हुए बिना उसकी प्रगति संभव नहीं,

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