________________
। सन्दर्भ में पब हमें वह सौचना प्रापश्यक हो पाता है कि पुल . इस मैक्षिक पतन में क्या हम उत्तरदायी नहीं है ? हमारा पूक मव निस्सम हो जाने पर निश्चित ही योग उठेगा विवेवात्मक स्वर में । निकल उठेको प्रयासली "हम भी इस नैतिक पतन में कारणभूत है।" चिन्तन की यही क्षणिका जीवन में परिपर्सन ला सकती है। - बस्तुसः यह माधुनिकसा भी किस काम की जो हमारे पालीवजनों को भ्रष्टापार के मार्य पर मानकर है, राष्ट्र को पतन के गले में फेंकने का मार्य प्रशस्त कर थे, भान्तरिक बौन्दर्य को भाटियामेट करने का बीड़ा उठा ने ? कहाँ गया हमारा बह बारतीय जीवन दर्शन पिसमें हिंसा और अपरिग्रह की मौरव माषाएँ बुट्टी हुई है, सन्तोषी हुत्ति को सहजता पूर्वक अपनाने पर बल दिया गया है, पात-प्रतिपातों को शान्ति पूर्वक सहन करने का आह्वान भी है।
हमारी प्राध्यात्मिक विचारधारा का अवलम्बन ले रहे हैं पाश्चात्यवासी और एक हम हैं कि प्रपनी ही पवित्र धरोहर को समाप्त करने पर तुले हुए हैं, मौर भातिकवादी दृष्टिकोण अपना रहे हैं, पाश्चात्य सभ्यता की जूठन का अन्धानुकरण कर रहे हैं । जैसा हम जानते हैं, भौतिक सुख-समृद्धि के माधुनिक साधनों से पास्तविक सुख भोर शान्ति नहीं मिल सकती । जितना हम भोमते जाते हैं, उतनी ही हमारी पाहें बढ़ती जाती हैं। उनकी प्रपूर्ति हो जाने पर मन प्रसन्न अवश्य हो उठता है पर बह प्रसन्नता क्षणिक होती है, भाभास मात्र होती है । अनैतिकता के दलवल में पनपा पेट कहां तक हरा भरा रहेगा?
भारतीय संस्कृति इसीलिए अध्यात्म पर जोर देती है, जीवन को समयता से देखने का माहान करती है, और नैतिकता को भान्तरिकता के साथ बोड़ने का पुरजोर समर्थन करती है। यहां मेरे कहने का यह भी तात्पर्य नहीं कि हम एकदम विजुट मध्यात्मकाबी बन जायें। मध्यात्मवाद तो वास्तविक जीवन का मभित्र मन है, एक स्वाभाविक संघटना है। विधुत्ता की स्थिति तक पहुंचने वा यथाक्रम प्रयास ही सफलता का सही साधन बन सकेगा।
भ्रष्टाचार पमपाने में जहां हम कारणभूत हैं वहीं उसके उन्मूलन की बिम्मेवारी भी पास की विषम परिस्थिति में हमारे शिर पर है। हम सीमित प्राय के दायरे में अपने संयमित जीवन को सीमित इन्धानों के माध्यम से सुखद बना सकते है और कमरोन की सरह बनने वाले संक्रामक इस दूषित पापार-विचार को फैलाने से रोक वाते हैं। हमारी महं भूमिका प्राण की कामाबाबारी, मिलावट, धूमसोरीपादि
विषाक्त बयानों को दूर मारने में महत्वपूर्ण पार्ट भरा कर सकता है। भवलल महारीमारी से निकसकर पुल्या के मार्ग को अपनायें पोर नैतिकता बमा माम्बात्मिकता के हित जीवन को प्रात्त बनाने में अपनी प्रतिषा और स्थाभाषिक पति का पचासम्भव श्योग करें। नारी मुछिका भानोमन पापड़