Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 134
________________ मारने की पृष्मी यो मुला गर्व की बमबहाती विनायी बापावापी नही करती मे जैसी महमाई के समय बेरोक से सात मानक के समान दुबले पखसे वेतन मामा म्यापार से उनकी पहा मी मां पूरी हो सकती ...इस पैसे प्रश्न का उतर गम्भीर नी के तट पर बैठकर पिता पूर्वक देना होगा। मन का हर कोना बग-बगल झांकेगा कुछ कहने म बाहने को, विश होमा तथ्य के उद्घाटन में स्वयं को पाटबरे के पन्दर खरे करने को तमी त्य की परतें उपड़ेंगी, वास्तु स्थिति सामने प्राणी मोर रोगले मुक्त होने का रास्ता नबर मावेगा। इसमें दो मत नहीं हो सकते कि माधुनिकता किंवा भौतिकता के प्रवाह में माधुनिक नारी अपने पापको जितनी प्रवाहित करती जा रही है उतनी ही पनसिकता समाज मोर राष्ट्र मे फैलती जा रही है । माधुनिकता के चक्कर में उसके अरमानों, पावश्यकताओं और अपेक्षाओं की इतिश्री विराम लेने की राह पर दिखती नहीं। उसका दृष्टिकोण घनघोर भौतिकतावादी होता आ रहा है। पाज की जी-सोड मंहगाई, प्रासमान को छूते बीजों के भाव और सिमपर वेकारी का मांधी शिरदर्द । इन सभी ने मानव मूल्यों का बास मस्तस तक मिरा दिया है । इस स्थिति में माधुनिकता का जामा यदि और मोड लिया जाये सो समान अनैतिकता के गहन कीचड़ में फंसे बिना रह कैसे सकता है? फेशन परस्त महिला का पाये दिन बदलते फैशन के साथ चलने के लिए भी मचल उठता है और उसकी करि पाद पुरुषवन के सामने बढ़ जाती है । साधन सीमित और मावश्यकताए असीमित पाखिर क्या करे प्रयोगजित करने वाला । परिवार के सदस्यों को खुण रखने और समाज में सथापित स्टेटस को बनाए रखने के लिए उसे विषय होकर कुछ और करना पड़ता है । यही कुछ और' उसे प्रमैतिक मोर भ्रष्टाचारी बनाने को बाध्य भारी के बाल सोन्दर्य का उपासक ' पुरुष मनोवजानिक दृष्टि से नारी के समक्ष अपने की मसहाय मौर बुबंस सिद्ध नहीं करना चाहता । उसकी प्राजक्षामों के सामने यह साधारणतः घुटने टेकने के लिए तैयार नहीं हो पाता। इसलिए मार. पारिक शांति की दृष्टि से बह सान्दर्य प्रसाधनों की हर हिंसक मामी को पुकाने में

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