Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 126
________________ """ नारी में कि यक्ति की क्षमता हो हुए भी उसे अपनी तंत्र नहीं की गई। यह कारण है कि साहित्य, राजनीति अपना में पुरुष वर्ग के समक्ष नारी वर्ग का उतना योगदान दिवाई नहीं देखा प्रारम्भ से ही दुरुषों के समान नारी वर्ग भी क्या साहित्य का सजेब नहीं कर सकता था, पर करना कैसे ? उसे तो मात्र घर का खिलौना बना लिया था। उसके पास शुल्हा-चक्की और पति को प्रसन्न रखने के अतिरिक्त समय ही कहाँ ? मा ये सारी परिस्थितियां और संदर्भ बदलते चले जा रहे हैं और पुरुष वर्ग महिला वर्ग को क्रमशः स्वतन्त्रता देता चला जा रहा है । देता क्यों नहीं ? नारी चाम्स को उग्र रूप उसके सामने जो था । परिणामस्वरूप जब कभी नारी को अपनी प्रतिमां मौर शक्ति का प्रदर्शन करने का अवसर मिला, उसने उसका भरपूर उपयोग किया। यही कारण है कि बाज हर क्षेत्र में महिलामो का योगदान दिखाई दे रहा है। ( भाज के सन्दर्भों में हम जब महावीर की लाकर खड़ा करते हैं वो ऐसा मनता है कि महावीर बड़े क्रांतिकारी विचारक थे। उन्हें हम मात्र अध्यात्मसाचक नहीं कह सकते । उनके सिद्धान्तो की मोर ध्यान देने से तो हमें ऐसा लगता है कि बिना काम उन्होंने प्रात्म साधना के क्षेत्र में किया उससे भी कहीं प्रषिक समाज की संरचना में उनका हर सिद्धान्त मात्मचिन्तन के साथ मागे बढ़ता है और उसकी परिनिष्ठा समाज की प्रगति में पूरी होती है। इसे हम दूसरे शब्दों में कहें तो कह सकते है कि महावीर ने व्यष्टि के साथ ही समष्टि पर ध्यान दिया मौर प्रादर्श परिवार के निर्माण में अपने सिद्धान्तो की सही व्याक्या की । V. महावीर के मूल सिद्धान्त अहिंसा को सभी जानते हैं। इस एक सिद्धान्त में उनके समूचे सिद्धान्त गर्भित हैं। परिवार को प्रादर्शमय बनाने में उनकी विशेष उप योगिता देखी जा सकती है। परिवार का हर सदस्य यदि संकल्प कर ले कि वह किसी दूसरे के दिल को दुखाने का उपक्रम नहीं करेगा तो संघर्ष होने की बात ही नहीं प्रायेगी । वस्तु को यथातथ्य प्रस्तुत करना, एक दूसरे के प्रस्तित्व पर कुठाराघात न करना, प्राचरण में विशुद्धि बनाये रखना और मावश्यकता से प्रणिक पा का संकलन न करना तथा सभी की दृष्टियों का समादर करना ऐसे तथ्य है जिन परं प्रादर्श परिवार को संरचना टिकी हुई रहती है । " बहावीर ने ग्रात्म-संयम की भी बात बड़े विश्वास के साथ कहीं । समों विश्वास था कि संक्रम ही एक ऐसा साधन है जो व्यक्ति-व्यक्ति के बी स्थापित कर सकता है। नारी यदि धात्मसंयम की बात ग्रहण कर से भर जितने बर्तन बनते हैं, उनका बचना बन्द हो जाय । नारी यदि कमनी भूल

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