Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 128
________________ tat इसे प्रकार महावीर के नारी की अनेक समस्यायों पर जीपूर्वक सोचा और परम्परा के विशेष में बड़े होकर नारी को स्वता का दान दिया उनकी ही ऋतिकारी विचारधारा के परिणामस्वरूप नारी पुरुष के कये है feareर मध्यात्म क्षेत्र में उतर सकी। इसे हम नारी मुक्ति का मान्दोलन कह सकते हैं। महावीर ने नारी को प्रगति पथ पर लाने के लिए जो कुछ भी किया, वह अविस्मरणीय है और रहेगा। वह तब और सार्थक माना जा सकता है कि बारी वर्ग उसके बताये मार्ग पर चलकर मादर्श परिवार की संरचना करे तथा अपनी आत्मयति को पहिचाने। साथ ही पुरुष वर्ग उसे मनुकूल वातावरण प्रदान करें । एव के दोनों चक जब तक समन्वय की साधना नहीं करते तब तक परिवार में सुख और शांति नही हो सकती । प्रतिष्ठा और गजरथ महोत्सव मैसी प्रभावनात्मक पाकि afaffoयां भी तभी सार्थक मानी जा सकती हैं जबकि हम महावीर भगवान द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर भलीभांति चलकर तृतीय विश्व युद्ध के कगारों पर बड़ी दुनिया को महिंसा का शान्ति सन्देश सुनायें | धन्यया निर्धनों के समय और पैसे का दुछपयोग तथा धूमधाम के अतिरिक्त और कुछ नही होगा । नारी वर्ग इस लक्ष्य की प्राप्ति मे निश्चित ही प्रसनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है । इस प्रकार समतावादी भोर पुरुषार्थवादी जैन दर्शन नारी चेतना का पुरस्कृत करने का पूर्ण पक्षपाती है। कुछ समस्याएं ऐसी भी हैं जिन्हें समाधानित करने के लिए नारी को स्वयं ही कमर कसनी होगी । पुरुषवर्ग उसमें निमित्त भले ही बन सकता है । निमित-मिलक प्राधार लेकर जैन सिद्धान्त के अनुसार वस्तुतः नारी की प्राध्यात्मिक और व्यावहारिक समस्याओं का समाधान ग्रन्वेषीय है । X X X देश, काल मौर परिस्थितियों के अनुसार वस्तु भीर व्यक्ति को परवाने के मापदण्ड बदलते रहते हैं । एक समय था जब नारी घरेलू काम-काज में दक्ष होते मात्र से 'आदर्श गृहिणी' समझी जाती थी लेकिन सब एक प्रादर्श पहिली बनने से ही नारी जीवन की इतिश्री नही होती। उसे कुछ और धागे बढ़कर सोचने की धावश्यकता है । ure के भौतिकवादी युग में मानव जीवन भय, संत्रास, कुंठा और निराशा से भरा हुआ है । लोगों में जीवन के प्रति कोई प्रास्पा नहीं विवाई देती यह मद हुए संवों का ही परिणाम है। ऐसी स्थिति में मात्र कृत्रिमता और के प्रति निःसंता का का परिवार के सदस्यों में दृष्टिगोचर हो ।

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