Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 103
________________ सामावरित सूफियों, रेलवों पार जनों ने मालामख कोमा स्वर पर स्वीकारा है। सूफी साधना में इसी को विक मीर फिक संशा से विहित किया गया है। पादसेवन, वन्दन और मिर्जन को भी इन कवियों ने अपने मों में भर है । उपासम्म, पश्चात्ताप, लघुता, समता मोर एकवा से सत्व भापति में यथाबत् उपलब्ध होते हैं। इन कपियों के पर्दो को तुमनात्मक दृष्टि से देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वे एक पूसरे से किस सीमा तक प्रभावित रहे। योग साधना माध्यात्मिक रहस्य की उपलब्धि के लिए एक सापेग मंद है। सृष्टि के मादि काल से लेकर पाम तक यह समान कासे व्यवहत होता पा रहा है । जायसी, कबीर, नानक, मीरा प्रादि संतों ने, सरहपा, कण्हपा बादि से सहव. मामी सियोंने, कौलमार्गी और नाप प्राचार्यों ने, चमत्कारवादी सहजिया सम्प्रदायी महात्माप्रों मे योग साधना का भरपूर उपयोग किया है । जैन धर्म ने भी एक लम्बी परम्परा के साथ सूफी मोर सन्तों के समान मन को केन्द्र में रखकर सावना के क्षेत्र को विस्तृत किया है । उनमें यह विशेषता रही है कि साधारणतः उन्होंने अपने पापको हठ योम से दूर रखा है और साध्य की प्राप्ति में योग का पूरा उपयोग किया है। ब्रह्मस्व या निरंजन की अनुभूति के बाद साधक समरसता के रंग में रंग जाता है। रहस्य भावना का यह मन्यतम उद्देश्य है। आध्यात्मिक किंवा रहस्य की प्राप्ति के लिए स्वानुभूति एक अपरिहार्य तत्व है। इसे जैन-नेतर सापकों ने समान रूप से स्वीकार किया है । प्राध्यात्मिक विवाह पौर होली जैसे तत्वों को भी कवियों ने मात्मसात किया है । रहस्यवाद की प्रमिव्यक्ति के लिए संकेतात्मक, प्रतीकात्मक, व्यसनापरक एवं मालंकारिक शैलियों का उपयोग करना पड़ता है। इन शैलियों में अन्योक्ति शैली, समासोक्ति शैली, संवृत्ति मतामूलक शैली, रूपक शैली, प्रतीक शैली विशेष महत्वपूर्ण है। जैन साधकों ने निगुण और सगुण दोनों प्रकार की भक्तियों का प्रवलम्बन लिया है। परन्तु उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी पहिचान बनाये रखी है। सूफी कवि जैन सापना से बहुत कुछ प्रभावित रहे हैं। कबीर प्रादि निर्गुणी सन्चों ने भी बैन विचारधारा को पात्मसात किया है। जनों का निकल-सकल परमारमा निर्मुख मोर सगुण का ही रूप है । यह अवश्य है कि मध्यकालीन जनेवर कवियों के समान हिन्दी बन कवियों के बीच निपुण अथवर सपुण भक्ति शाखा की सीमा रेखा नहीं वितरीये दोनों भवल्यामों पुवारी रहे हैं क्योंकि ये दोनों प्रस्थाएं एकही मात्मा की पानी गई है। उन्हें ही न पारिवारिक सम्बों में सिरमौर महन्त महा गया है। इस परिक्म में जाम माधुनिकाय में अधिक रहाव भावमा को देखते है तो गाय और बन रहस्य मावना मैं साम्म कम पार बसम्म माषिक सिचाई बालसभी सम्पों पर प्रस्तुत गोष-वन्य में सीमा पजवन स्तुत

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