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स्वरूप को यदि सही ढंग से उस तक पहुंचाया जाये तो उसके दृष्टिको ur कठिन नहीं है। वैसे पहले की अपेक्षा बाज कुछ परिवर्तन पाया भी है। फिर वहीं कहा जा सकता ।
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धाज सारा विश्व नये मायाम लिये प्रगति कर रहा है पर हम उससे धनबिश से बने हुए हैं। हम अपने परिवारिक घटकों में न समन्वय स्थापित कर पा रहे हैं और न उन्हें एक निश्चित सुदृढ़ प्रगति का साधन दे पा रहे हैं। चाशुकि परिप्रेक्ष्य में हमें अपनी सारी समस्यानो की पृष्ठभूमि में उतरना होगा चौर निष्पक्ष होकर उन पर विचार करना होगा। अन्यथा हम जहां हैं वही रहेंगे। वहां से अधिक मागे बढ़ नहीं सकेंगे ।
नारी वर्ग चेतना का प्रतीक है। उसमे किसी भी प्रकार की क्षमता का प्रभाव नही है । बस, आवश्यकता है एक नये उत्साह भौर प्रेरणा स्रोत की जो उसे सहानुभूति और सहिष्णुता पूर्वक अविरल स्नेहिल सौहार्द दे सके तथा अपनी समस्थायी के समाधान की भोर मनसर हो सके। इसका सबसे अच्छा उपाय है कि हम अपनी बेटियो, बहुभो मौर बहनो को अधिक से अधिक सुशिक्षित करें और उन्हें सुसंस्कृत वातावरण के परिवेश में जीवन यापन करने दें। दहेज न दे पाने से उनका जीवन दूभर हो रहा है। पुत्रियों के प्रति होने वाले व्यवहार से उनके मन में हीनभावना और विद्रोह भावना दोनो एक साथ पनपती रहती है। इसलिए वे न तो अपनी शक्ति का उपयोग स्वयं के विकास में लगा पाती हैं पौरन दूसरों का ही विकास कर पाती हैं। बल्कि परेशान होकर प्रात्म हत्या की घोर उन्मुख होने के लिए विवश हो जाती हैं । कतिपय घन प्रेमी दानव परिवार तो उनका घात करने में भी संकोच नहीं करते ।
दहेज प्रथा निषेध अविनियम, 1961 नारी को इस नारकीय जीवन से मुक्त करने के लिए अपेक्षित वातावरण तैयार नही कर सका। सरकार दहेज का दीमक खतम करने के लिए कठोर कानून बनाने पर सक्रियता से विचार अवश्य कर रही है पर वह कहां तक सफल सो सकेगी, कहना कठिन है। हर कानून को तोड़ने के वैधानिक रास्ते निकाल लिए जाते हैं । मतः अब इसके विरोध में नारी द्वारा ही आन्दोलन का सूत्रपात किया जाना चाहिए ।
हम यह मानते हैं कि नारी की कुछ सामाजिक समस्याएं ऐसी हैं जितका समाधान पुरुष वर्ग के स्नेहिल सहयोग बिना सम्भव नहीं है । उसका सहयोग से पाना कठिन भी नहीं है। उसके दृष्टिकोण में परिवर्तन जाने की बद्रा एवं