Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ PUR पांच गई है। की शिल्पास्मा देखकरपी समाविका कोहली है। मो योनि की समाय है को मन मार्मिक मानों का जमावा गारिक विधि-विधान कराने वाला हमारा साधु और पंडित वर्ग माया के उसकी वास्तविकता को गले उतार सके तो निश्चित ही एक नया मा दुरगा। पार की पूर्ण पोदी-इन वि-िमानों को पानी मनसे विमुख हो जाती है और फिर धर्म की सीमा को हो छोड़ देता है स्ततः बाह्य क्रियाकाण्ड सांस्कृतिक रस्में को, समेटे रहते हैं। साल है कि ये क्रियाकाह कभी-कभी धर्म के मूल बस से कटकर कुछ दूसरे ही मान रास्ता ग्रहण कर लेते हैं जिसे हम धर्म के वास्तविक स्वरूप से सम्बद नई र पाते । परन्तु यह तस्व तो हर धर्म के विकास के इतिहास के साथ बुरा हमा रहना है। इसका तात्पर्य यह नहीं कि इस प्रकार के तस्व पर्थ होते हैं। हाल तौर पर प्रतिष्ठा, पवामृताभिषेक, शासन देवी-देवतामों की पूजा ?) मारिजोवलयाच की नयी पीढ़ी को धर्म की और प्राकर्षित कर सकते है और किया, भीम धर्म की भोर विशेष लगाव नही है, वे भी इन साधनों के माध्यम से सामाजिकता की भोर अपना कदम बढ़ाते हैं और सास्कृति की विरासत को मजबूत करते हुए वार्षिक क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। दूसरे शब्दो में हम यह कह सकते है कि विनि-विमान के पुनीत मन्दिर के अन्दर तक पहुचने के लिए एक सुन्दर द्वार है जिसके बिना वर्ष तक पहुंचना कठिन होता है पर इसमें भेदविज्ञान, विवेक और नमकपर्व पर ध्यान रखना भाषश्यक है। इन सबके बावजूद यह पवश्य ध्यान रखा जाना चाहए कि ये विधिविधान साधन है, साध्य नहीं । पहिंसा, अपरिग्रह पौर'समता के सम्मा की कामाबाद निश्चयनय और व्यवहारनय की समन्वयवादिता पर बन, समाव को असकर सिद्ध होगा। वैसे ये विकास के ही परिणाम। माजकल समाज में एक पौर विवाद चल पड़ा है प्रतातीय विवाहा चाहिए या नहीं। मैं समझती है, ऐसे सम्बन्ध होने में कोई बुराई नहीं है। प्रभार के मूल्यांकन का प्राधार समय सम्पख हुमा करता है। प्राचीनकाल में विजन अम्भसयामाप्रसमिकड़ियों से विकास नहीं रेसलिए Aname भगति के वो उसे प्राचीन ग्रन्थों में मिले । मन्हें पड़कर इस है। महापुण और कुबलरमाला प्रावि साये में सार्यवाहों मिले। जिन शिविध सहावी भारी कमीनो मरे भने में मामी मम मरे से और ज्यापार के साथ प्रश्पिरिक पावरा ही विना करते

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137