Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 123
________________ केबानको सम्मान भापताप मोर कोणाली सीमा gree मेम्बर बापारी विदिशा के विम्बर परिवार से अपनी पुषी का सम्बन करा बारपटना का विमम्बर पावक बमपुर के स्वास्थर श्रावक वे अपने पुत्र का , इस सम्बन्धों से साम्प्रवारिक एकता बनी रहती दी। पारस्परिक विवाद मन्दिरों, मूर्तियों अथवा उपायों के सम्बन्ध में अधिक कटुता नहीं रहा करती था। बॉकि हर सम्प्रदाय परस्पर में किसी न किसी रूप में सम्बद रहता था । विवाद साम्प्रदायिकताभन्म होते है और विवाहों से इस प्रकार की साम्प्रदायिकता टूटती है, विवादों की जा स्वतः कट-सी बाती है और सम्बन्ध में मधुरता माती है जो सामाजिक विकास के लिए मावश्यक है। सामाजिक प्रगति के लिए एक और अन्य मावश्यक साधन है-प्रार्षिक प्रगति जिसकी सम्भावना इस प्रकार के विवाह-सम्बन्षों से और अधिक बढ़ जाती है । सम्प्र. वाय प्रवेशपत भी होते है और हर प्रदेश के अपने-अपने स्वतन्त्र साधन होते है जिनपर उसका भाचार निर्भर करता है। यह व्यापार विवाह सम्बन्ध के माध्यम से पारस्परिक नावान-प्रदान बढ़ाता है, मार्थिक क्षेत्र का विकास होता है और अमीरीगरीबी के बीच की खाई को भरने के नये साधन सामने मा जाते हैं। विाहों की साम्प्रदायिक परिधि के टूट जाने से शिक्षा जगत को भी लाभ होमा विससे विभिन्न साम्बाधिक साहित्य का अध्ययन-अध्यापन बढ़ेगा । एक दूसरे के विवादों में निःसंकोच प्रवेश होने से मानसिक पुस्षियों सुलझेगी, मलगाव दूर होला, कवियों र लेखकों को चितन की नई सामग्री मिलेगी। अध्यात्मिक प्रगति के क्षेत्र में भी इस प्रकार के विवाह सम्बन्ध उपयोगी होते।हर बैन सम्प्रदाय की माध्यात्मिक प्रक्रिया कुछ न कुछ मिल रहा करती है। विवाह सम्बाप उनमें पारस्परिक समझ पौर सामंजस्य स्थापित करें जिससे महात्मा विकसित होगा और म्पति वा समाज की प्रपति रात दिन बनी। अलेक सम्बवाब के साथ उसकी संसति कुड़ी रहा करती है। बब बिभिन्न बसन्नबालों में विवाह समान्य मारम्भ हो जाये तो स्वभावतः संकलियों में सायनवालोमा और एक सम्प्रदाय तरे सम्प्रदाय के उपयोगी तत्वों को पहल भरमा बाचनल्ल, कोणीत, मोकनाट्य लोककपाएं बैठी मिपाए परिपुष्ट हाली, ईब की निता महामा, पार भनेक पुड़ियों का मत होला। . वहाँ वह मन रमवा गा सकता है कि हर न सम्प्रदाय की तमि

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