Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 121
________________ 114 शामिक नहीं पाते। बैन का विधि परम्परा से सम्बार और नि परंपंरा से सम्बय होने के कारण इसके विधि-विधान भी शुद्ध पानिकोला चाहिए। धर्म पत्रिमता अपना स्वाभाविकता का दूसरा नाम है यदि हमारा लक्ष्य परमसुख और निर्माण की प्राप्ति की भोर हैपी उसके साधन न विधि-विधान भी परम बन मामा केही विशुद्ध स्वम को परमात्मा मानवा है। इस पर. मापद की प्रावि लिए उसे किसी सामान की पावश्यकता नहीं होती। यह सात्वनिम्तन भारत र मर पदाथों से मोह छोड़ते हुए क्रमशः मागे पता है भारबहन-सिवनमा प्राप्त कर सकता है। इस अवस्था की प्राप्ति के लिए शनिक विधि-विधान एक सोपान किंवा साधनको रूप में स्वीकारे गये हैं। चाहे वह मूर्वि-पूजा हो अथवा विधान, चाहे वह उपवास हो अथवा कीर्तन, ये सभी वस्तुतः बाप साधन है। म संस्कृति के विकासात्मक इतिहास को देखने से यह पता चलता है कि बेन धर्म मूल रूप से इनको विधि-विधानों का पक्षपाती नहीं है । उत्तरकाल में विविध पर-छ परम्पराएं भायीं और उनके माध्यम से शासन देवी-देवताओं की भक्ति, पासना, पूजा पाठ प्रादि साधनों का प्रारम्भ हो गया । इन सभी पर वैदिक संस्कृति का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। अब प्रश्न उठता है कि वर्तमान संदर्भ में इनकी मावस्यकता क्या है ? भाज की मार्ट कट संसहति यह मांग करती है कि उसे कम समय और शक्ति में अधिक से यधिक फल मिले । साधना का क्षेत्र तो निश्चित ही बड़ा नम्बा, चौरा और गम्भीर है। उसमें एकायक प्रवेश करना भी सरल नही है। इसलिए युवा पीढी को पाकपित करने के लिए पार्मिक विधि-विधान निश्चित ही उपयोगी साधन है। ये साधन ए जिनमें व्यक्ति अपने मापको कुछ समय के लिए रमा लेता है और मामे की सारियों पर बढ़ने की पृष्ठभूमि संचार कर मेता है। यदि कोई निमननय मात्र की बात करके पबहारनय की उपेक्षा कर दे तब तो वह मात्र मात्मा की ही बात करता रहेगा और मजिल तक पहुंचने के लिए शायद ही उसे कमी सौभाग्य मिल सकेगा। दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं हमा को बामिक विधि-विधानों की उपेक्षा कर सका हो । शुभोपयोग की बितनी भी प्रतिया पान-पूजा धादि, वे सभी कर्ममक विधि-विधानों के मन्तर्मत या बाती है। ऐसी स्थिति में शामिक विधि विधान से मुसाले का सरते हैं। पान की युग पाली वर्तमान राजनीतिक भार सामाजिक सन्बनों को देखकर

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