Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

View full book text
Previous | Next

Page 113
________________ 166 मनसर मिला वह सहस-नहस कर बियर यया । उसकी शारीरिक वा मौर मानसिक भासा का लाभ उठाकर पुश्वकर्मा ने उसे पुनः बका शिकार पर सम्बन के कोर पिपड़े में फंसकर उसकी प्रतिमा मोषरा गई। एक प्रकीया करवा रंग देकर उसे भी खोलकर मना-बुरा कहा गया । पिनमहरियों में अपने णों का सारा बोझ मधला नारी के निर्बल कंधों पर रख दिया और दूर खो। होकर हर तरह की मालोचना भरे गीत गाना प्रारम्भ कर दिये। उचरमारलीन, कवियों ने तो नारी की प्रच्छी खबर ली। उसके मंग-प्रत्पगों का जी खोलकर रोमांचक वर्णन किया । इस प्रकार की स्थिति लगभग 19 वी शती तक चलती रही। कुछ गिनी-चुनी महिलाएं अवश्य हुई जिन्होंने ऐसी विकट परिस्थिति में भी अपनी बीरता व सहस का परिचय दिया। समाज में नारी की स्थिति का गम्भीर मध्ययन करने के बाद बिनोवा से अध्येता पौर पितक को यह कहना पड़ा कि जब तक नारी धर्म में से ही कोई शंकराचार्य जैसा व्यक्तित्व पैदा नहीं होता तब तक उसका उद्धार नहीं हो सकता । इसका स्पष्ट पर्थ यह है कि हमे अपने स्वातन्त्र्य के लिए स्वयं ही प्रयत्नशील होना होगा। वह किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा देने से नहीं मिल सकता। कदाचित् मिला तो हम उसका मूल्याकन नहीं कर पायेगे । ओ वस्तु स्वयं के श्रम से प्राप्त की जाती है उसके प्रति हमारे मन में अधिक श्रद्धा और लगाव रहता है और जो वस्तु बिना मायासे, के ही मिल जाती है उसके महत्व को हम नहीं समझ पाते । यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है। हमारा सारा धर्म मोर संहिताए पुरुष द्वारा निर्मित हुई हैं। उन पर पुरुषों का ही माधिपत्य रहा है इसलिए अभी तक नारी समाज को परावलम्बन का मुंह देखना पा। परावलम्बन में जागृति और चेतना कहाँ ? जब तक व्यक्ति के मन में अपने स्वतन्त्र मस्तित्व के लिए संघर्ष की बात गले न उतर आये तब तक वह प्रगति के रास्ते पर चल ही नहीं सकता । प्रगति के इसी रास्ते को अभी तक अवरुद्ध बनाये रखा है। इस अवरोष को नारी वर्ग स्वयं जब तक अपनी पूरी शक्ति से तोडगा नही, प्रमतिपथ प्रशस्त नही हो सकेगा। कभी वस्तु को तोड़ने से वह मौर टूट जाती है पौर कभी वस्तु के तोड़ देने पर उसे अपने ढंग से जोड़ भी दिया जाता है। यह जोड़ कभी-कभी मूल वस्तु से कही मधिक मजबूत होता है । हमें पुरानी निरर्थक परम्परामों को तोड़कर इसी प्रकार मजबूत जोड़ लगाना है । ऐसी परम्पराएं जिन्होंने नारी समाज को प्रस्त-व्यस्त कर दिया, अर्जर कर दिया, शक्तिहीन कर दिया, दहेज, बासविवाह, विधवा विवाह, बहुपत्नीप्रथा, परदा प्रथा मावि समस्याएं प्रमुख हैं।। इन सभी विकराल सबस्यों को पारकर हमें अपनी और समाज की प्रगति करनी है। इसलिए जिस परम शक्ति की भागस्यकता है से काम करने का

Loading...

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137