Book Title: Jain Sanskrutik Chetna
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Sanmati Vidyapith Nagpur

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Page 104
________________ परिवर्त 5 नारी वर्ग चेतना नदर्शन समतावादी, पुरुषार्थवादी, पास्मवादी पर मोदी साथ सामाजिक और दार्शनिक क्षेत्र में उतरा और उसने व्यष्टि और areकालिक तथा शाश्वत समस्यानों पर अपने सूत्र व्यक्ति के विकास के विभिन्न सोपान बनकर अमर बन गये। दर सन्दर्भ में इन सूत्रों का व्यावहारिक उपयोग न हो सका । जैनदर्शन को वैदिक काल की पृष्ठभूमि हामी जननी है यह शाश्वत सूत्र नारी की स्थिति के साथ प्रार अथ से लेकर इति तक किसी भी साहित्य में पुत्र की नहीं दिया गया बल्कि उसे बंधन कारक तथा मानक पांचा के पीछे उसकी प्राकृतिक तथा शारीरिक दुर्वखतायें समय ही है पर सिक स्थिति को दृढ़तार करने का सवसर प्रदान नहीं किया था। के steera में पुत्र प्राप्ति की तीव्रता पिता व्यक्त की जाती रही है। इसका नम कर वह का पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए पुत्र को ही होने पर पुत्री का परिवार बदच जाने से नही कर्म से कि भभीत रहता है लिए की स्थापना कर पूर्ण कराता है। उसके बावा-पिता की स्वार्यविधि नहीं हो पा यही कारण है। केके में कर कभी की कार पर ही की है। के क ही की ए की विव

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